जीवने शरीरनी क्रियानो के शुभरागनो घात थई जतो नथी. ते क्रिया एवी ने
एवी होवा छतां अज्ञानीने सम्यक्त्वादिनो घात थाय छे;– केमके सम्यक्त्वादि
धर्मो जीवना छे, ते कांई शरीरनी क्रियाना आधारे के रागना आधारे नथी.
सम्यक्त्वादि धर्मो जो शरीरना आधारे होय तो, ते सम्यक्त्वादिनो घात थतां
शरीरनो ने रागनो पण घात थई जवो जोईए.
गुणोनो घात थई जतो नथी; शरीरादिनो घात थवा छतां जीवना सम्यक्त्वादि
धर्मो एवा ने एवा रहे छे; केमके सम्यक्त्वादि धर्मो जीवना छे, ते कांई शरीरनी
क्रियाना आधारे के रागना आधारे नथी. जो शरीरादिना आधारे जीवना
सम्यक्त्वादि धर्मो होय तो, ते शरीरादिनो घात थतां सम्यक्त्वादिनो पण घात
थई जवो जोईए. पण एम तो देखातुं नथी.
अत्यंत भिन्नपणुं छे, तेमने आधार–आधेयपणुं नथी. जीवना सम्यक्त्वादि
धर्मो जीवना ज आधारे छे, परना आधारे नथी. –आवुं भेदज्ञान करनार जीव,
पोताना सम्यक्त्वादि समस्त गुणो माटे पोताना स्वद्रव्यनो ज आश्रय करे छे,
पोताना गुणोमां कोईपण परद्रव्यनो के रागनो आश्रय ते मानतो नथी.
कोई परद्रव्य ईष्ट–अनिष्ट देखातुं नथी; परद्रव्य मारो कोई गुण आपतुं नथी,
पछी तेना उपर राग शो? तेमज परद्रव्य मारा कोई गुणनो घात करतुं नथी–
पछी तेना उपर द्वेष शो? आम वीतराग–अभिप्रायवडे धर्मी जीव
ज्ञानचेतनारूपे परिणमतो थको परनो संबंध छोडे छे. ज्ञानचेतनाना
सम्यक्त्वादिभावोमां तेने रागादि छे ज नहि. अवस्थामां जे किंचित रागादि
देखाय छे ते ज्ञानचेतनामां तन्मयपणे नथी पण भिन्नपणे छे.
आश्रये परिणमी रह्या छे–एम अमे सम्यक्प्रकारे देखीए छीए; सम्यक्त्वादि