जेवो छे तेवो जाणे छे. सम्यग्दर्शन साथेना ते स्वसन्मुखी
ज्ञानमां अंशे अतीन्द्रियपणुं थयुं छे, रागथी भिन्न चैतन्यना
अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद तेमां आव्यो छे. – आवुं सम्यग्ज्ञान
ते वीतराग विज्ञान छे. आवा जैनधर्मने पामीने आत्माना
सुखने माटे हे भव्य जीवो! तमे सम्यग्ज्ञानने निरंतर आराधो–
एम वीतराग. मार्गी संतोनो उपदेश छे.
सम्यग्दर्शननी साथे ज सम्यग्ज्ञानथी उत्पत्ति थाय छे, एकसाथे ज बन्ने प्रगटे
केमके लक्षणभेदे बंनेमां भेद छे, तेमां कांई बाधा नथी. सम्यग्दर्शननुं लक्षण तो
शुद्धात्मानी श्रद्धा छे, अने सम्यग्ज्ञाननुं लक्षण स्व–परने प्रकाशवारूप ज्ञान छे. तेमां
प्रकाशनी माफक तेमनामां कारण कार्यपणुं कहेवामां आवे छे. सम्यक्श्रद्धा अने ज्ञान बंने
आराधना एकसाथे ज शरू थाय छे पण पूर्णता एकसाथे थती नथी. क्षायिक सम्यक्त्व
थतां श्रद्धा–आराधना तो पूरी थई गई, पण ज्ञाननी आराधना तो केवळज्ञान थाय
त्यारे पूरी थाय छे; माटे ज्ञाननी आराधना जुदी बतावी छे. सम्यग्दर्शननी जेम
सम्यग्ज्ञाननो पण घणो महिमा छे.
जाणवानी शक्ति नथी. ‘हुं राग छुं’ एम कांई रागने खबर नथी पण रागथी जुदुं
एवुं ज्ञान जाणे छे के ‘आ राग छे अने हुं ज्ञान छुं, आ रीते रागनो