सामर्थ्य पासे राग तो कांई छे ज नहीं. निजभावमां अभेद थईने, अने परभावथी
भिन्न रहीने ज्ञान स्व–परने स्वभाव–विभावने बधायने जेम छे तेम जाणे छे. राग
पण ज्ञानथी भिन्न तत्त्व छे, राग ते कांई स्वतत्त्व नथी. आवुं भेदज्ञान करवानी
ताकात ज्ञानमां ज छे. ते ज्ञान वीतराग–विज्ञान छे, ते जगतमां साररूप छे, मंगळरूप
छे अने मोक्षनुं कारण छे.
जाणपणुं होय के व्रतादि शुभ आचरण होय ते बधुं मिथ्या ज छे, तेनाथी जीवने
अंशमात्र सुख मळतुं नथी. मोक्षनुं प्रथम पगलुं सम्यग्दर्शन छे, तेने हे भव्य जीवो!
तमे शीघ्र धारण करो.
अनादिथी करी ज रह्यो छे, ए कोई नवी वात नथी; तेनाथी पार आत्मानो अनुभव
केम थाय, सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान केम थाय? तेनी आ वात छे. आ अपूर्व छे, अने
आ ज सुखी थवानो उपाय छे. भाई! संसारनी चारगतिनी रखडपटीथी तुं थाक््यो हो
ने हवे तेनाथी छूटीने मोक्षसुखने चाहतो हो–तो आ उपाय कर.. वीतराग विज्ञानरूप
साचुं ज्ञान कर, आत्मज्ञान कर.
सम्यग्ज्ञान करे तो कल्याण थाय. तेनी प्राप्ति पोताथी थाय छे, बीजा पासेथी थती नथी.
देव–गुरु–शास्त्र एम कहे छे के हे जीव! तारे माटे अमे परद्रव्य छीए; अमारी
सन्मुखताथी तने सम्यग्दर्शनादिनी प्राप्ति नहि थाय, पण तारा पोताना लक्षे ज तने
सम्यग्दर्शनादि थशे, माटे रागनी ने पराश्रयनी बुद्धि छोड. परलक्ष छोडीने पोतामां
पुण्यपापथी पार एवा शुद्ध ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी रुचि कर. बाह्यपदार्थो तो क््यांय
रह्या, पोतामां रहेला गुणना भेदनो विकल्प पण जेमां नथी–एवुं सम्यग्दर्शन ने
सम्यग्ज्ञान छे ते अपूर्व चीज छे. तेना वगर पूर्वे बीजुं बधुं जीवे कर्युं, पण पोताना स्वरूपनुं