Atmadharma magazine - Ank 360
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : आसो र४९९ :
शोभा छे? आत्मा तो पोतानी आनंदमय शुद्धचेतनाथी अलंकृत छे, तेमां ज आत्मानी
शोभा छे.
चेतनाथी जेम जड शरीर जुदुं छे ने कर्म जुदुं छे तेम राग पण चेतनाथी जुदो ज
छे. रागनी उपाधि चेतना उपर नथी, चेतना तो रागथी जुदेजुदी पोताना सहज
निजगुणोथी शोभे छे. –अहो, आवा निजगुण–पर्यायोथी अलंकृत जगप्रसिद्ध सत्य
आत्माने हे भव्य जीवो! तमे जाणो. कर्मथी तेमज विकारी भावोथी भिन्न एवी
चेतनावडे शोभित चैतन्यवस्तुने ज्ञानमां एवी कोतरो के ज्ञान पोते वीतराग–आनंदथी
शोभी ऊठे; अशुद्धतानो कोई अंश तेमां न रहे. आवी चेतनाथी जेणे पोताना आत्माने
अलंकृत कर्यो तेणे समस्त जिनागमनो सार पोताना ज्ञानमां कोतरी लीधो... तेनो
आत्मा पोतेपरमागमनुं मंदिर थयो.
भाई, शांतिस्वरूप तारो आत्मा पोते छे. परभावोथी ने जडथी जुदेजुदो तारो
चैतन्यभागलो परम शांतिथी भरेलो अखंड विद्यमान छे, तारा ते भागलाने लईने तुं
आनंदित था. तारो भागलो घणो सुंदर छे, मोटो छे, विकारनी भेळसेळ तेमां नथी.
अरे, तारी जुदी वस्तुने एकवार तुं जो तो खरो! एने देखतां तने कोई अपूर्व तृप्ति ने
आनंद थशे.
वाह! संतोनी वाणी शांतिनी देनारी छे.
वीतरागनां वचनो समजतां आत्मामांथी आनंद झरे छे.
अहो, जिनेन्द्रभगवाने उपयोगस्वरूप आत्मा सदाय कर्मोथी ने रागथी जुदो ज
कह्यो छे. कर्मथी जुदो उपयोगस्वरूप आत्मा जगतमां प्रसिद्ध छे. आवा जगप्रसिद्ध सत्य
आत्माने हे भव्य! तुं जाण, तेने तुं अनुभवमां ले. अहा, जैनशासनमां केवळज्ञानी
परमात्माए दिव्यध्वनिवडे कर्मथी अत्यंत भिन्न चिदानंदस्वरूप आत्मा देखाड्यो छे, तेने
जे जाणे छे तेणे ज खरेखर भगवानना शुद्ध वचनने जाण्या छे. शुद्ध वचनना वाच्यरूप
शुद्धआत्मा जेणे जाण्यो तेणे ज खरेखर भगवानना शुद्ध वचनने जाण्या छे. कर्मथी ने
रागथी जुदो शुद्ध आत्मा देखाडे तेने ज ‘शुद्धवचन’ कहेवाय छे, जे वचन राग–द्वेष–
मोहनी पुष्टि करे ते वचन शुद्ध नथी. जे वचन आत्माना वीतराग भावने पुष्ट करे ते
ज शुद्धवचन छे. आवा शुद्धवचनरूप जिनोपदेशने पामीने हे भव्य!