सोनगढना भव्य परमागममंदिरमां कोतरायेली छे. तेनुं काम
झडपथी पूर्णता तरफ प्रगति करी रह्युं छे ने मंगलउत्सवना
भणकारा वागवा मांडया छे. बस, हवे तो जोशीजी कयुं शुभ
मूरत काढी आपे छे तेनी राह जोवाय छे. मात्र परमागम नहीं,
परमागमनी साथेसाथे तेना प्रणेता श्री महावीर भगवान पण
पधारशे ने पंचकल्याणकमहोत्सवपूर्वक परमागममां बिराजशे..
ते प्रभु ना कहेला परमागमोमां जे मधुरी चैतन्यप्रसादी भरी छे
ने जेनो अपूर्व स्वाद गुरुदेवे आपणने चखाड्यो छे, तेनो थोडो
थोडो नमूनो आत्मधर्ममां अपाय छे. अगाउ पण परमागमनी
मधुरी प्रसादी आपी गया छीए ने अहीं समयसार तथा
अष्टप्राभृतना प्रवचनमांथी प्रसादी आपवामां आवे छे.
आवता आखा वर्ष दरमियान ‘परमागमनी मधुरी प्रसादी’
नो आ विभाग चालु रहेशे. सौ जिज्ञासुओ आनंदथी
परमागमनो लाभ लेजो. (सं.)
जाय छे; –आ निर्णय तो बधा सम्यग्द्रष्टिने जरूर होय छे; अने परना
सम्यक्त्वनो निर्णय पण अनुमानादि द्वारा थई शके छे.
द्वारा) सम्यक्त्वने ओळखवुं ते व्यवहार छे.
आवो वीतरागमार्ग सांभळीने तेनी प्रतीत करवी, अने तेनाथी विरुद्ध मार्गने