PDF/HTML Page 41 of 53
single page version

PDF/HTML Page 42 of 53
single page version

छे. आ आठमो लेख छे. वीतरागमार्गना परमागमनी प्रसादी
केटली सुंदर–मधुर–आनंददायी छे! तेनो स्वाद तो जे चाखे तेने ज
खबर पडे तेवुं छे. प्रवचनमां गुरुदेव कहे छे के–बापु! जैनधर्ममां
तो वीतरागी देव–गुरुनुं सेवन छे; तेमने ओळखतां, परमार्थ
आत्मानी ओळखाण थाय ने अंदर पोताने चैतन्यरसना
अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद आवे,–एवो आ जैनमार्ग छे. अरे,
आवो उत्तम मार्ग पामीने कुमार्गने कोण सेवे? बापु! आवो
जैनमार्ग अनंतकाळे कोई महाभाग्यथी मळ्यो छे. तारी दर्शनशुद्धि
माटे, तारा कल्याणने माटे तुं परम सत्य वीतरागमार्गना देव–
गुरु–शास्त्रने बराबर ओळखीने, तेमना मार्गनुं उत्साहथी सेवन करजे.
चैतन्यसुखमय आत्मा, ने बीजीकोर समस्त राग अने विषयो–
एम बंनेनुं सर्वथा भेदज्ञान करावीने जिनवचन विषयोनुं
विरेचन करावे छे ने चैतन्यसुखनो उत्साह जगाडे छे.–अहो,
चैतन्यनुं सुख आपनारां आवां जिनवचनो महान उपकारी छे.
एम नथी. द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे थईने सत् वस्तुनी पूर्णता छे.
PDF/HTML Page 43 of 53
single page version

द्रव्य–गुण–पर्याय सर्वेमां व्यापक छे.
अभावरूप नथी. ‘आ द्रव्य, आ गुण, आ पर्याय’ एवा भेदनुं लक्ष रहे त्यां विकल्प छे,
तेमां अटके तेने निर्विकल्प अनुभूति थती नथी.
निर्ग्रंथ छे; चोथा गुणस्थाने सम्यग्दर्शन छे तेने पण निर्ग्रंथ कहेवाय छे, केमके ते
सम्यग्दर्शनमां मिथ्यात्व–मोहनी गांठ छूटी गई छे. मुनिदशाने योग्य निर्ग्रंथपणुं
(बहारमां पण ज्यां वस्त्रादि परिग्रह नथी) ते तो छठ्ठा–सातमा गुणस्थाने होय छे.
आवो निर्ग्रंथमार्ग ते जैनदर्शननो मत छे. आवा जैनदर्शननी ओळखाणपूर्वक,
शुद्धात्मानी अनुभूतिरूप जे सम्यग्दर्शन छे ते धर्मनुं मूळ छे.
के त्याग वगेरेनी अधिकता देखाय तो तेथी कांई धर्मीने तेनो महिमा न आवे; धर्मभ्रष्ट
जीवने जे अनुमोदे, प्रशंसा करे, ते जीव पोते पण धर्मथी भ्रष्ट थाय छे, वीतराग
जैनदर्शनना साचा मार्गने ते जाणतो नथी. वीतराग जैनमार्ग तो मोहनी गांठ वगरनो
ने वस्त्रादि परिग्रह वगरनो निर्ग्रंथ छे.
PDF/HTML Page 44 of 53
single page version

सहधर्मी छे. अज्ञानीओ पोताना स्वभावने भूलीने संसारमां दुःखी थई रह्या छे,
तेमना प्रत्ये तो धर्मीने करुणा होय छे.
आराधना करवा जेवी छे. भाई, आवा सुंदर वीतराग जिनमार्गने साधवा माटे तुं
जगतना कुमार्गथी छूटो पडी जा. शुद्ध जैनमार्ग सिवाय बीजा सामे जोईश मा.
जैनधर्मनी मूर्ति तो वीतराग होय, दिगंबर होय. जैनमुनिनो देखाव परम वीतराग
होय छे, एनी अंतरनी दशा तो शुद्धोपयोगमय अलौकिक, ने बहारनी निर्ग्रंथ दशा पण
अलौकिक होय छे.
धर्मनी बाबतमां शिथिल थवुं योग्य नथी. अरे, वीतरागी जैन देव–गुरुओ, तेमने
छोडीने बीजा अज्ञानी–कुगुरुओने जे वंदन–पूजन करे छे ते तो धर्मना निमित्तने छोडीने
संसारना मार्गने सेवे छे, ते वीतरागी देव–गुरुथी प्रतिकूळ थयो, वीतराग जैनमार्गथी
भ्रष्ट थयो.
आवे,–एवो आ जैनमार्ग छे. अरे, आवो उत्तम मार्ग पामीने कुमार्गने कोण सेवे?
बापु! आवो जैनमार्ग अनंतकाळे कोई महाभाग्यथी मळ्यो छे. तारी दर्शनशुद्धि माटे,
तारा कल्याण माटे तुं परमसत्य वीतरागमार्गना देव–गुरु–शास्त्रने बराबर ओळखीने,
तेमना मार्गनुं उत्साहथी सेवन करजे.
मानतो नथी. देवनुं स्वरूप जे विपरीत माने, मुनिनी चारित्रदशाने जे विपरीत
PDF/HTML Page 45 of 53
single page version

PDF/HTML Page 46 of 53
single page version

छे: तमे बालविभागना सभ्य हो के न हो–पण आ योजनामां भाग लेतां तमने जरूर
तमारा हाथमां ज छे; शोधवा मांडो. (वडीलोने खास विनति के आ शोधखोळ विद्यार्थी
पासे ज करावजो, आप तेने शोधी आपशो नहि.) डीसेम्बरनी पहेली तारीख सुधीमां
वाक््य शोधीने मोकलनार बधाने गुरुदेवनो एक फोटो अगर पुस्तक भेट मोकलाशे.
१.
महान भाग्ये, आपणा जीवनमां ज वीरनाथभगवानना मोक्षगमनना अढीहजारवर्षनो
PDF/HTML Page 47 of 53
single page version

खूब–खूब सेवा करीने जैनशासनने दीपाववानुं छे.
धर्म बालविभाग, सोनगढ–सौराष्ट्र) ए सरनामे जेम बने तेम वेलासर लखी
मोकलशो. घणा सभ्यो मोटा थया हशे, तेओ पण विना संकोचे पोतानी विगत लखी
मोकलशो. आपनुं पोस्टकार्ड आवतावेंत अमे आपने एक सुंदर पुस्तक (आ
अढीहजारमा वर्षनी बोणीमां) भेट मोकलीशुं. नवा सभ्य थवुं होय तेओ पण उपर
मुजबनी विगत लखी मोकलशो. (सभ्य फी कांई नथी)
२. महावीर प्रभुना निर्वाणगमनना अढी हजारमा वर्षमां
आपणे वीरशासनमां आव्या, आपणने वीरनाथनो सुंदर मार्ग गुरुदेवे बताव्यो; अने
विशेषमां प्रभुना मोक्षगमनना अढीहजार वर्षना महोत्सवनो प्रसंग पण अत्यारे
PDF/HTML Page 48 of 53
single page version

–उत्साहथी भाग लेजो.
२. महावीर भगवानना मोक्षगमनना अढीहजारमा वर्षमां
उपरनी पांचमांथी ओछामां ओछी बे वातनुं पालन करनार आ निबंधमां
(३) निबंधनुं लखाण नोटबुकना चार के पांच पानां जेटलुं कागळनी एक बाजु
PDF/HTML Page 49 of 53
single page version

वैराग्यवंत राजकुमारे नम्रतापूर्वक कह्युं–के पिताजी! आप आ राज्यने शा माटे छोडी
रह्या छो?
एटले हुं पण आपनी साथे ज असार संसारने छोडीने, मुनि थईश ने मोक्षसुखने
साधीश.
आपणे पण महावीरप्रभुनी जेम मोक्षपुरीना मार्गे जवानुं छे.
चित्रनी संपूर्ण माहिती सहित काची रूपरेखा अमे आपीशुं ते उपरथी डीझाईन करी
आपवानी रहेशे, तेनो सुयोग्य चार्ज आपीशुं. आपनी कळानो धार्मिक साहित्यमां
उत्तम उपयोग थशे. तो जे कलाकार जैनभाई धार्मिक साहित्यमां पोतानी सेवा आपवा
तैयार होय तेमणे नीचेना सरनामे पत्रव्यवहार करवा आमंत्रण छे.
PDF/HTML Page 50 of 53
single page version

वीरनाथ प्रभुना निर्वाणनुं अढीहजारमुं वर्ष, अने त्रीजुं पू बेनश्री चंपाबेन जेवा
PDF/HTML Page 51 of 53
single page version

जांबुडी पधार्या हता ने नव दिवस रह्या हता. नव दिवस सुधी धार्मिक शिक्षणवर्ग
चालेल, तेमां हजारो जिज्ञासुओए उत्साहथी लाभ लीधो हतो. जांबुडी जेवा
नानकडा गाममां ठेरठेर वीतरागवाणीनी मीठी ज्ञानपरब चालती हती ने हजारो
जीवो अत्यंत प्रेमथी ज्ञानरसनुं पान करता हता. वीरनिर्वाणना पचीससो वर्षना
भव्य उत्सव माटे पण गुजरातने अने भाईश्री बाबुभाई तथा प्रमुखश्री
नवनीतभाई वगेरेने घणो उत्साह छे. गुजरात–सौराष्ट्र–कच्छना मुमुक्षुओ पण तेमां
साथ आपवा आतूर छे. पू. गुरुदेव जांबुडी पधारतां वीतरागविज्ञाननी घणी सारी
प्रभावना थई हती. गुरुदेव जांबुडीथी प्रस्थान करीने ता. ९मीए अमदावाद
पधारशे, अने त्यां चार दिवस रोकाईने ता. १३मी नवेम्बर (कारतक वद त्रीज)ना
रोज सोनगढ पधारशे.
महायज्ञमां हजारो जिज्ञासुओए ‘आनंद–उल्लासथी भाग लीधो हतो. अनेक
ग्रेज्युएटो, कोलेजियनो तथा शिक्षको अने विद्यार्थीओए घणा प्रेमथी जैनधर्मना
तत्त्वज्ञाननो अभ्यास कर्यो हतो. मलकापुरना युवानो शास्त्रस्वाध्यायना प्रेम माटे
पहेलेथी प्रसिद्ध छे. खरेखर आजना सुशिक्षित युवानो पण धर्मना अभ्यासमां जे
रस लई रह्या छे ते जैनसमाजनी उन्नतिनी निशानी छे. ‘जुवानिया धर्ममां रस
नथी लेता’ एवी वृद्ध माणसोनी जुनी वातने आजना उत्साही युवानोने धोई
नांखी छे. धन्य छे युवानोने! युवानो हजी पण वधु ने वधु जागो...ने जैनधर्मना
विजयध्वजने ऊंचे ऊंचे फरकावो.
समिति नीमवामां आवी छे. जेमने विद्वाननी जरूर होय, साहित्यनी जरूर होय
शिक्षणशिबिर के पाठशाळा के खोलवी होय, तेमणे नीचेना सरनामे पत्रव्यवहार
करवो–
PDF/HTML Page 52 of 53
single page version

कहे छे के : जेम मधदरियामां वहाण उपर बेठेला पंखीने ते वहाण सिवाय बीजुं कोई
शरण नथी, बीजो कोई आधार नथी, एटले आकाशमां ते गमे तेटला चक्कर लगावे
पण अंते तो थाकी थाकीने ते वहाण उपर ज आवीने बेसे छे, वहाण सिवाय बीजुं
कोई तेने शरण के आश्रयरूप नथी. आकाशमां चक्कर लगावे पण त्यां तेने कोई
आश्रयस्थान नथी, आश्रयस्थान तो एक वहाण ज छे. नीचे चारेकोर पाणी ने उपर
आकाश–तेमां वहाण सिवाय कोई ज शरण नथी, एटले बीजी गतिनो निरोध करीने ते
वहाण उपर ज आवीने बेसे छे. जरा ऊडे तो ते वहाणनी आसपास ज ऊडे छे,
तेम अहीं भवसमुद्रने तरवामां मुमुक्षुजीव ते पंखी छे ने शुद्धात्मा ते वहाण
छे...मुमुक्षुनी परिणति फरीफरीने शुद्धात्मामां एकाग्र थाय छे, केमके आ भवसमुद्रनी
मध्यमां मोक्षने साधवा माटे मुमुक्षुने एक पोतानो शुद्धात्मा ज ध्रुव शरणरूप छे. बाकी
बीजा बधा संयोगरूप भावो अध्रुव अने अशरण छे. मोक्षना मुसाफर मुमुक्षुने निज
शुद्धात्मारूपी वहाण सिवाय बीजुं कोई शरण नथी, बीजो कोई आधार नथी. एटले
अस्थिरताथी कदाच विकल्प थाय ने बर्हिभावरूपी गगनमां ऊडे तोपण स्वद्रव्यना ज
अवलंबननी बुद्धि होवाथी अंते तो परिणति शुद्धात्मामां ज आवीने ठरे छे, शुद्धात्मा
सिवाय बीजुं कांई शरणरूप के आश्रयरूप नथी. विकल्प आवे तो ते आकाशमां चक्कर
आ रीते मोक्षने माटे बीजी गतिनो निरोध होवाथी मोक्षार्थीनी परिणति स्वद्रव्यनुं ज
अवलंबन करे छे.
PDF/HTML Page 53 of 53
single page version

आत्माने स्वानुभवमां लईने तमे आनंदरूप थया छो, जिनेश्वरना
चैतन्यजीवन जीवो.
आत्माने हे शिष्य! तुं जाण. रागथी पार थईने अतीन्द्रियज्ञान वडे