Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : कारतक : २५००
३१३० पीयुश सुरेशचंद्र जैन दाहोद ३१पप जयश्रीबेन नगीनदास जैन मुंबई–६४
३१३१ पंकज सुरेशचंद्र जैन दाहोद ३१प६ संजय नगीनदास जैन मुंबई–६४
३१३र नूतन सुरेशचंद्र जैन दाहोद ३१प७ हीनाबेन नगीनदास जैन मुंबई–६४
३१३३ जयेश सुरेशचंद्र जैन दाहोद ३१प८ अशोक बाबुलाल जैन बेंग्लोर–र
३१३४ रंजनबाळा झवेरीलाल जैन दाहोद ३१प९ केतन बाबुलाल जैन बेंग्लोर–र
३१३प हितेश भूपतराय जैन राजकोट ३१६० परेशाबेन बाबुलाल जैन बेंग्लोर–र
३१३६ जागृतीबेन मनुभाई जैन सोनगढ ३१६१ दर्शनाबेन भूपतराय जैन मुंबई–८६
३१३७ संगीताबेन रमेशचंद्र जैन मोरबी ३१६र कल्पनाबेन भूपतराय जैन मुंबई–८६
३१३८ अमुलख दयाळजी जैन अमदावाद–१ ३१६३ प्रविणचंद्र नेमचंद्र जैन महादेवपूरा
३१३९ भावनाबेन दयाळजी जैन अमदावाद–१ ३१६४ आरतीबेन दलीचंद जैन राजकोट
३१४० भारतीबेन दयाळजी जैन अमदावाद–१ ३१६प राजेश्रीबेन अमरचंद जैन वांकानेर
३१४१ मालाबेन धीरजलाल जैन अमदावाद–१ ३१६६ सोनलबेन प्रभुदास जैन सोनगढ
३१४र सतीष धीरजलाल जैन अमदावाद–१ ३१६७ बीनाबेन अशोकचंद्र जैन भावनगर
३१४३ वंदनाबेन अनंतराय जैन अमदावाद–१ ३१६८ अनिल अशोकचंद्र जैन भावनगर
३१४४ कस्तुरभाई मोहनलाल जैन अमदावाद ३१६९ महेन्द्र के. जैन मुंबई–४
३१४प भरतकुमार वृजलाल जैन सोनगढ ३१७० कीर्ती के. जैन मुंबई–४
३१४६ रीटाबेन चंद्रकान्त जैन शांताक्रुझ ३१७१ शिल्पाकुमारी नवीनचंद्र जैन मुंबई–पप
३१४७ शिल्पाबेन चंद्रकान्त जैन शांताक्रुझ ३१७र भारतीबेन जीवराज जैन मुंबई–६४
३१४८ नीरजभाई चंद्रकान्त जैन शांताक्रुझ ३१७३ हरेशकुमार जीवराज जैन मुंबई–६४
३१४९ रोहितकुमार मगनलाल जैन देरोल ३१७४ किरणकुमार जीवराज जैन मुंबई–६४
३१प० दिलीप माधवलाल जैन मारवाडा ३१७प मुंजाल रजनीकांत जैन मुंबई–६
३१प१ हसमुख हरगोविंददास जैन सोनगढ ३१७६ वर्षाबेन नगीनदास जैन मुंबई–६४
३१पर आरतीबेन रसिकलाल जैन बीलीमोरा ३१७७ जगदीशकुमार नगीनदास जैन मुंबई–६४
३१प३ महावीर रसिकलाल जैन बीलीमोरा ३१७८ केतनकुमार नगीनदास जैन मुंबई–६४
३१प४ निकिताबेन हसमुखलाल जैन सुरेन्द्रनगर [बाकीनां नामो आवता अंके]
वीरनाथप्रभुना मोक्षना आ अढीहजारमा वर्षमां आपनुं
जीवन उन्नत्त बनावीने वीरशासनने शोभावो.

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: कारतक : २५०० आत्मधर्म : ३९ :
परमागमनी मधुरी प्रसादी
[लेख: ८]
आत्मधर्म अंक ३५२, ३५३, ३५४, ३५५, ३५६, ३५८
अने ३६० मां आ लेखमाळाना सात लेखो अगाउ छपाई गया
छे. आ आठमो लेख छे. वीतरागमार्गना परमागमनी प्रसादी
केटली सुंदर–मधुर–आनंददायी छे! तेनो स्वाद तो जे चाखे तेने ज
खबर पडे तेवुं छे. प्रवचनमां गुरुदेव कहे छे के–बापु! जैनधर्ममां
तो वीतरागी देव–गुरुनुं सेवन छे; तेमने ओळखतां, परमार्थ
आत्मानी ओळखाण थाय ने अंदर पोताने चैतन्यरसना
अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद आवे,–एवो आ जैनमार्ग छे. अरे,
आवो उत्तम मार्ग पामीने कुमार्गने कोण सेवे? बापु! आवो
जैनमार्ग अनंतकाळे कोई महाभाग्यथी मळ्‌यो छे. तारी दर्शनशुद्धि
माटे, तारा कल्याणने माटे तुं परम सत्य वीतरागमार्गना देव–
गुरु–शास्त्रने बराबर ओळखीने, तेमना मार्गनुं उत्साहथी सेवन करजे.
वीतरागनी वाणी मोहने कापी नांखवा माटे तलवारनी
तीखी धार जेवी छे.–एक घाए बे कटका! एककोर अतीन्द्रिय
चैतन्यसुखमय आत्मा, ने बीजीकोर समस्त राग अने विषयो–
एम बंनेनुं सर्वथा भेदज्ञान करावीने जिनवचन विषयोनुं
विरेचन करावे छे ने चैतन्यसुखनो उत्साह जगाडे छे.–अहो,
चैतन्यनुं सुख आपनारां आवां जिनवचनो महान उपकारी छे.
• सत्नी पूर्णता •
वस्तुनी सत्ता (सत्त्व, सत्पणुं) द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां व्यापीने समाप्त थाय
छे. परंतु एकला द्रव्यमां के गुणमां ज सत्ता व्यापे छे ने पर्यायमां सत्ता नथी व्यापती–
एम नथी. द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे थईने सत् वस्तुनी पूर्णता छे.

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: ४० : आत्मधर्म : कारतक : २५००
सत् द्रव्य–गुण–पर्याय ए त्रणेय सत्त्वनो ज विस्तार छे, सत्त्वथी (एटले के
वस्तुनी सत्ताथी) ते कोई जुदा नथी. तेमज जुदी–जुदी त्रण सत्ता नथी, एक ज सत्ता
द्रव्य–गुण–पर्याय सर्वेमां व्यापक छे.
• अभेदनी अनुभूतिमां आनंद; •
ते अनुभूतिमां पर्यायनी गौणता छे, अभाव नथी
सत्नी अनुभूतिमां ‘द्रव्य–गुण–पर्याय’ एवा भेद रहेता नथी, त्यां तो
अभेदनी अनुभूतिनो वीतरागी आनंद छे ते अनुभूतिमां शुद्धपर्यायो गौणरूप छे,
अभावरूप नथी. ‘आ द्रव्य, आ गुण, आ पर्याय’ एवा भेदनुं लक्ष रहे त्यां विकल्प छे,
तेमां अटके तेने निर्विकल्प अनुभूति थती नथी.
• निर्ग्रंथ जैनमार्ग; चोथागुणस्थाने पण सम्यग्दर्शननुं निर्ग्रंथपणुं •
आत्मानो वीतरागस्वभाव छे; ते स्वभाव तो मोहादि वगरनो निर्ग्रंथ छे; अने
ते स्वभावने अवलंबीने जे रागरहित सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्रदशा प्रगट थई ते पण
निर्ग्रंथ छे; चोथा गुणस्थाने सम्यग्दर्शन छे तेने पण निर्ग्रंथ कहेवाय छे, केमके ते
सम्यग्दर्शनमां मिथ्यात्व–मोहनी गांठ छूटी गई छे. मुनिदशाने योग्य निर्ग्रंथपणुं
(बहारमां पण ज्यां वस्त्रादि परिग्रह नथी) ते तो छठ्ठा–सातमा गुणस्थाने होय छे.
आवो निर्ग्रंथमार्ग ते जैनदर्शननो मत छे. आवा जैनदर्शननी ओळखाणपूर्वक,
शुद्धात्मानी अनुभूतिरूप जे सम्यग्दर्शन छे ते धर्मनुं मूळ छे.
ज्यां आत्मानुं ज्ञान साचुं नथी, जैनमार्गना देव–गुरु–सूत्रने जे मानतो नथी
एवो जीव पोते तो धर्मथी भ्रष्ट छे, अने एवा भ्रष्ट जीवमां बहारना कोई जाणपणानी
के त्याग वगेरेनी अधिकता देखाय तो तेथी कांई धर्मीने तेनो महिमा न आवे; धर्मभ्रष्ट
जीवने जे अनुमोदे, प्रशंसा करे, ते जीव पोते पण धर्मथी भ्रष्ट थाय छे, वीतराग
जैनदर्शनना साचा मार्गने ते जाणतो नथी. वीतराग जैनमार्ग तो मोहनी गांठ वगरनो
ने वस्त्रादि परिग्रह वगरनो निर्ग्रंथ छे.
• अहो, सत्य जैन वीतरागमार्ग! एना महिमानी शी वात! •
अरे, जैनदर्शन तो अलौकिक वीतरागमार्ग छे! वीतरागी स्वानुभवी संतोनो जे
अभिप्राय, सर्वज्ञदेवनो जे मार्ग, ते कुंदकुंदाचार्यदेवे प्रसिद्ध कर्यो छे. ए निर्ग्रंथ

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: कारतक : २५०० आत्मधर्म : ४१ :
वीतरागमार्गनो विरोध करीने जेओ कुमार्गमां प्रवर्ते छे तेओ जैनमार्गथी भ्रष्ट छे.
धर्मात्मा सत्यमार्गने प्रसिद्ध करे अने असत्यमार्गने निषेधे, तेथी कांई कोई
व्यक्ति प्रत्ये तेने विरोध नथी. सर्वे जीवो ज्ञानमय छे,–ए अपेक्षाए तो बधा जीवो
सहधर्मी छे. अज्ञानीओ पोताना स्वभावने भूलीने संसारमां दुःखी थई रह्या छे,
तेमना प्रत्ये तो धर्मीने करुणा होय छे.
चैतन्यनो उत्साह छूटीने क्यांय परनो उत्साह धर्मीने थतो नथी. अहो,
चैतन्यने साधवानो आवो वीतराग जैनमार्ग, एनो उत्साह, एनी प्रशंसा, एनी
आराधना करवा जेवी छे. भाई, आवा सुंदर वीतराग जिनमार्गने साधवा माटे तुं
जगतना कुमार्गथी छूटो पडी जा. शुद्ध जैनमार्ग सिवाय बीजा सामे जोईश मा.
जैनधर्मनी मूर्ति तो वीतराग होय, दिगंबर होय. जैनमुनिनो देखाव परम वीतराग
होय छे, एनी अंतरनी दशा तो शुद्धोपयोगमय अलौकिक, ने बहारनी निर्ग्रंथ दशा पण
अलौकिक होय छे.
• महाभाग्ये जैनधर्म मळ्‌यो....उत्साहथी तेनुं सेवन कर! •
अहा, देव–गुरु–धर्म तो सर्वोत्कृष्ट पदार्थ छे, तेमनी ओळखाणना आधारे तो
धर्म अने मोक्षमार्ग छे; तेथी तेमनी बराबर ओळखाण करवी जोईए. देव–गुरु–
धर्मनी बाबतमां शिथिल थवुं योग्य नथी. अरे, वीतरागी जैन देव–गुरुओ, तेमने
छोडीने बीजा अज्ञानी–कुगुरुओने जे वंदन–पूजन करे छे ते तो धर्मना निमित्तने छोडीने
संसारना मार्गने सेवे छे, ते वीतरागी देव–गुरुथी प्रतिकूळ थयो, वीतराग जैनमार्गथी
भ्रष्ट थयो.
बापु! जैनधर्ममां तो वीतरागी देव–गुरुनुं सेवन छे; तेमने ओळखतां परमार्थ
आत्मानी ओळखाण थाय ने अंदर पोताने चैतन्यरसना अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद
आवे,–एवो आ जैनमार्ग छे. अरे, आवो उत्तम मार्ग पामीने कुमार्गने कोण सेवे?
बापु! आवो जैनमार्ग अनंतकाळे कोई महाभाग्यथी मळ्‌यो छे. तारी दर्शनशुद्धि माटे,
तारा कल्याण माटे तुं परमसत्य वीतरागमार्गना देव–गुरु–शास्त्रने बराबर ओळखीने,
तेमना मार्गनुं उत्साहथी सेवन करजे.
सम्यग्द्रष्टिने भले मुनिदशा–चारित्रदशा न होय तोपण तेनी श्रद्धामां तेने तेनो
स्वीकार छे के जैनमार्गमां चारित्रदशा आवी होय. एनाथी विरूद्ध चारित्रदशाने धर्मी
मानतो नथी. देवनुं स्वरूप जे विपरीत माने, मुनिनी चारित्रदशाने जे विपरीत

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: ४२ : आत्मधर्म : कारतक : २५००
माने, जेना शास्त्रमां पण विपरीत प्ररूपणा होय,–ते जैनदर्शन नथी, ते तो जैन–
दर्शनथी बहार छे. भाई, तुं जैनदर्शननी साची ओळखाण तो कर;–तो तारुं कल्याण
थशे. महाभाग्ये आवो जैनमार्ग मळ्‌यो छे तो उत्साहथी तेनुं सेवन कर.
• अहो, वीतरागनां अद्भुत वचन...चैतन्यरसनो स्वाद चखाडे छे •
अहो, अद्भुत जिनवचन! ए चैतन्यना अमृतरसथी भरेलां छे, चैतन्यनी
शांतिरूप अमृतनो स्वाद चखाडीने ते विषयोमांथी सुखबुद्धि छोडावे छे. अहा,
चैतन्यना जे धर्मनो स्वाद चाखतां आखीये दुनियानो रस ऊडी जाय,–ए धर्म केवो?
ए धर्मदशा थाय त्यां तो अंदरथी आत्माने मोक्षना भणकार आवी जाय, मोक्षनी दिशा
खुली जाय, ने चैतन्यना शांतरसनो स्वाद आवे. तेथी कह्युं छे के ‘वचनामृत
वीतरागनां परम शांतरस–मूळ. ’
अहो, वीतरागनां वचनामृत परम शांतरसथी भरेलां छे, भवरोगने मटाडवानुं
ते परम औषध छे. ते भवरोगने मटाडीने चैतन्यनुं वीतरागी सुख चखाडे छे.
वीतरागदेवनां वचन समजे अने आत्मानुं सुख न मळे एम बने ज नहि; केमके
वीतरागनां वचन जीवादि पदार्थोनुं सम्यक्स्वरूप बतावीने, श्रेय अने अश्रेयनुं ज्ञान
करावे छे, एटले तेना ज्ञानथी जीव श्रेयमार्गने आदरीने कल्याणने पामे छे ने अश्रेय
एवा मिथ्यात्वादि भावोने छोडीने दुःखथी छूटे छे.
जुओ, आ जिनवाणीनुं फळ! जिनवाणी रागनी पुष्टि नथी करावती, पण
रागनी रुचि छोडावीने, वीतरागी चैतन्यभावनी पुष्टि करावे छे. अहो, वीतरागनां
वचन आत्माने शूरवीरता जगाडे छे. वीतरागनी वाणी पुरुषार्थ वगरनी होय नहि.
आत्मानो महा आनंद ज्यां वेदनमां आव्यो त्यां बाह्यविषयोमां सुखबुद्धि केम रहे?
चैतन्यना आनंद जेवुं सुख जगतमां बीजे क्यांय छे ज नहि. वाह रे वाह! वीतरागनां
वचन....चैतन्यरसनो अपूर्व स्वाद चखाडे छे.
* थानगढना भाईश्री कांतिलाल देवसीभाईना धर्मपत्नी श्री ललिताबेन आसो सुद १०
ना रोज स्वर्गवास पाम्या छे.
* वढवाणना भाईश्री त्रिकमलाल हिंमतलाल (उं. वर्ष १८) आसो वद १४ ना रोज
स्वर्गवास पाम्या छे. बे दिवस पहेलांं पण तेओ जिनमंदिर गया हता.
* भावनगरना श्री विजयाबेन अमरचंद भायाणी कारतक सुद १ रोज स्वर्गवास पाम्या
छे. अनेक वर्षोथी तेओ सोनगढ रहीने सत्संगनो लाभ लेता हता.
वीतरागी देवगुरुधर्मना शरणे तेओ आत्महित पामो.

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: कारतक : २५०० आत्मधर्म : ४३ :
महावीरनिर्वाणना अढीहजारमा वर्ष निमित्ते –
मात्र विद्यार्थी बंधुओ माटे स्वाध्यायनी सुंदर योजना
स्कूलमां के कोलेजमां जेओ अभ्यास करता होय एवा विद्यार्थी भाई–बहेनोने
वीतरागी साहित्यना वांचनमां उत्साह प्रेरवा माटे नीचेनी योजना रजु करवामां आवे
छे: तमे बालविभागना सभ्य हो के न हो–पण आ योजनामां भाग लेतां तमने जरूर
लाभ थशे:–
आत्मधर्मना आ अंकमां छपायेला लखाणोमांथी दश वाक्यो अहीं आप्यां छे; ते
अधूरां छे, तेनो बाकीनो भाग आ अंकमांथी शोधीने तमारे पूरो करवानो छे. अंक
तमारा हाथमां ज छे; शोधवा मांडो. (वडीलोने खास विनति के आ शोधखोळ विद्यार्थी
पासे ज करावजो, आप तेने शोधी आपशो नहि.) डीसेम्बरनी पहेली तारीख सुधीमां
वाक््य शोधीने मोकलनार बधाने गुरुदेवनो एक फोटो अगर पुस्तक भेट मोकलाशे.
(संपादक आत्मधर्म, सोनगढ सौराष्ट्र: ए सरनामे मोकलवुं.)
१.
आत्मानो आनंदरस एवो अद्भुत छे के..........
२. परमागम–मंदिरनो महोत्सव नजीक आवी रह्यो छे त्यारे वीरनाथ...
३. वाह रे वाह! वीतरागी संतोनी वाणी! आवी वीतराग..........
४. अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, जिनालय,...........
५. अहो! जाणे परम वात्सल्यथी गुरुदेवे सम्यक्..........
६. मुमुक्षु जीवोए पळे पळे........
७. तीर्थंकर थनार जीव...........
८. साधकजीव सम्यक्त्वना अखंड दीवडा प्रगटावीने..............
९. क्षायिक साथे जोडणीवाळुं सम्यक्त्व ते पण क्षायिक जेवुं ज छे; ए वात........
१०. अहो, वीरप्रभुना मोक्षनुं आ अढी हजारमुं वर्ष छे; भगवाननो मार्ग......
(आ दशमा वाक्य माटे जुओ पानुं –२)
बंधुओ, आपणा बालविभागमां नवेसरथी सुंदर आयोजन थई रह्युं छे, ते
आप सौ आ अंकमां जोशो. तमारो सौनो प्रेमभर्यो सहकार पण जरूरी छे. आपणा
महान भाग्ये, आपणा जीवनमां ज वीरनाथभगवानना मोक्षगमनना अढीहजारवर्षनो

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: ४४ : आत्मधर्म : कारतक : २५००
मंगलमहोत्सव आव्यो छे, तेनो आपणे सौए खूब लाभ लेवानो छे, ने जैनशासननी
खूब–खूब सेवा करीने जैनशासनने दीपाववानुं छे.
बालविभागनुं लीस्ट नवेसरथी लखीने तैयार करवानुं छे. तो तमारुं नाम–
सरनामुं, हालनी उमर–अभ्यास, जन्मदिवस तथा सभ्यनंबर पोस्टकार्डमां (आत्म–
धर्म बालविभाग, सोनगढ–सौराष्ट्र) ए सरनामे जेम बने तेम वेलासर लखी
मोकलशो. घणा सभ्यो मोटा थया हशे, तेओ पण विना संकोचे पोतानी विगत लखी
मोकलशो. आपनुं पोस्टकार्ड आवतावेंत अमे आपने एक सुंदर पुस्तक (आ
अढीहजारमा वर्षनी बोणीमां) भेट मोकलीशुं. नवा सभ्य थवुं होय तेओ पण उपर
मुजबनी विगत लखी मोकलशो. (सभ्य फी कांई नथी)
आ उपरांत आत्मधर्ममां रजु थती अवनवी योजनाओमां पण तमे आनंदथी
ने उत्साहथी भाग लेजो. जीवनमां तमने घणा सुंदर संस्कार मळशे.
–ली
तमारो भाई ब्र. ह. जैन
(सर्वे जिज्ञासु साधर्मीओ उत्साहथी भाग ल्यो)
१. महावीर भगवाननी ओळखाणथी आपणने थतो महान लाभ
२. महावीर प्रभुना निर्वाणगमनना अढी हजारमा वर्षमां
आत्महित माटे आपणुं कर्तव्य
बंधुओ, महावीर प्रभुना मोक्षगमननुं अत्यारे अढीहजारमुं (२५०० मुं) वर्ष
चाली रह्युं छे. वीर प्रभुनो मार्ग अत्यारे पण चाली ज रह्यो छे. आपणा महान सुभाग्ये
आपणे वीरशासनमां आव्या, आपणने वीरनाथनो सुंदर मार्ग गुरुदेवे बताव्यो; अने
विशेषमां प्रभुना मोक्षगमनना अढीहजार वर्षना महोत्सवनो प्रसंग पण अत्यारे
आपणा जीवनमां आव्यो. आपणे बहु उत्साहपूर्वक धर्मना रंगथी, जैनशासनना

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: कारतक : २५०० आत्मधर्म : ४५ :
प्रेमथी ने साधर्मीना वात्सल्यथी आ मंगल उत्सव उजवीशुं. आप सौ पण खूब प्रेमथी
–उत्साहथी भाग लेजो.
आ निमित्ते, नीचे लखेला बे विषयो संबंधमां आप निबंध लखी मोकलो.
१. महावीर भगवाननी ओळखाणथी आपणने थतो महान लाभ.
२. महावीर भगवानना मोक्षगमनना अढीहजारमा वर्षमां
आत्महित माटे आपणुं कर्तव्य.
निबंध लखवा माटे विशेष सूचनाओ नीचे मुजब–
(१) आ एक विषय उपर, के बंने विषयो उपर निबंध लखी शकशो.
निबंध गुजराती के हिंदी गमे ते भाषामां लखी शकाशे.
(२) विद्यार्थीओ उपरांत सर्वे जिज्ञासु भाई–बहेनो निबंध लखी शकशे पण
निबंधमां भाग लेनारे नीचेनी पांचमांथी कोईपण बे अगर वधु
नियमोनुं पालन आ आखा वर्ष सुधी करवानुं रहेशे–
१. हंमेशा भगवानना दर्शन करवा. (एक माईल सुधीमां मंदिर न होय त्यां रोज
नव नमस्कार मंत्र गणवा.)
२. रात्रिभोजन करवुं नहीं.
३. सिनेमा जोवुं नहीं.
४. कंदमूळ खावा नहीं.
५. हंमेशांं पोणी कलाक धार्मिकसाहित्य वांचवुं.
उपरनी पांचमांथी ओछामां ओछी बे वातनुं पालन करनार आ निबंधमां
भाग लई शकशे.
(३) निबंधनुं लखाण नोटबुकना चार के पांच पानां जेटलुं कागळनी एक बाजु
लखवुं. अने ता. पहेली जान्आरी 1974 सुधीमां (संपादक आत्मधर्म, सोनगढ
सौराष्ट्र 364250) ए सरनामे मोकली लेवा.
(४) श्रेष्ठ निबंध लखनारा प्रथम बे जिज्ञासुओने चांदीना ‘महावीर चंद्रक’ भेट
आपवामां आवशे. तथा बीजा निबंधलेखको वच्चे २५० अढीसो रूपियानी
किंमतना ईनामो आपवामां आवशे. (प्रमुखश्रीनी मंजुरीथी) –ब्र. ह. जैन

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: ४६ : आत्मधर्म : कारतक : २५००
वीरनाथना मोक्षनुं अढीहजारमुं वर्ष चाले छे.....आपणे वीरनां संतान छीए,
एटले आपणे पण वीर थईने वीरनाथना मार्गे जवानुं छे.
ज्यारे वज्रदंत चक्रवर्तीने संसारथी वैराग्य थयो अने पुत्रने बोलावीने कह्युं के
बेटा! हवे आ राज्यभारने तुं संभाळ. हुं राज्य छोडीने मुनि थवा मांगुं छुं.–त्यारे
वैराग्यवंत राजकुमारे नम्रतापूर्वक कह्युं–के पिताजी! आप आ राज्यने शा माटे छोडी
रह्या छो?
वजदन्त कहे छे:–बेटा, आ विनाशी राज्यने छोडीने हुं अविनाशी मोक्षसुखने
साधवा मांगुं छुं. आ राज्य तो अनंतवार भोगवी चुकेल एठसमान छे. जे आत्म सुख
मुनिपणामां छे, ते कांई राजपदमां नथी, तेथी हुं तेने छोडी रह्यो छुं.
पुत्र गंभीरताथी कहे छे–वाह रे वाह, पिताजी! आप जेने एठ समान समजीने
छोडी रह्या छो तेने हुं शा माटे खाउं? आपनी जेम में पण आत्मसुखने जाण्युं छे,
एटले हुं पण आपनी साथे ज असार संसारने छोडीने, मुनि थईश ने मोक्षसुखने
साधीश.
–आनुं नाम–‘बाप जेवा बेटा! ’
आपणे पण नाना नथी हो! आपणे महावीरनां संतान छीए.
आपणे पण महावीरप्रभुनी जेम मोक्षपुरीना मार्गे जवानुं छे.
चित्रकार बंधुओने–
आपणा आत्मधर्म माटे, तेमज बीजा बालसाहित्य माटेनां धार्मिक चित्रो
(ब्लोकस बनाववा माटे) करी आपे एवा जैन चित्रकार भाईनी खास जरूर छे.
चित्रनी संपूर्ण माहिती सहित काची रूपरेखा अमे आपीशुं ते उपरथी डीझाईन करी
आपवानी रहेशे, तेनो सुयोग्य चार्ज आपीशुं. आपनी कळानो धार्मिक साहित्यमां
उत्तम उपयोग थशे. तो जे कलाकार जैनभाई धार्मिक साहित्यमां पोतानी सेवा आपवा
तैयार होय तेमणे नीचेना सरनामे पत्रव्यवहार करवा आमंत्रण छे.
–ब्र. हरिलाल जैन, सोनगढ सौराष्ट्र ()

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: कारतक : २५०० आत्मधर्म : ४७ :
आत्मधर्म – मासिक
* भारतनुं अजोड अध्यात्मिक सचित्र मासिक.....पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी
आत्महितनो अपूर्व संदेश घर–घर पहोंचाडे छे, नाना बाळकोमां पण धर्मना मोटा
संस्कार रेडे छे.
* वार्षिक (कारतकथी आसो, भेट पुस्तकसहित) लवाजम चार रूपिया छे.
* दरमहिनानी दशमी तारीखे सोनगढथी पोस्ट थाय छे.
* आ अंकनी साथे ३१मा वर्षनो प्रारंभ थाय छे. आपनुं लवाजम आपे भरी दीधुं
हशे. सगां–स्नेही–जिज्ञासुओने पण आत्मधर्म पहोंचाडीने तेमने उत्तम धर्मसंस्कार
आपो.
* आ वर्ष वीरनाथप्रभुना मोक्षनुं पचीससोमुं वर्ष छे, तेमज सोनगढमां परमागम
मंदिरमां देव–गुरु–शास्त्रनी महान प्रतिष्ठानो मोटो उत्सव पण आवी रह्यो छे, ते
संबंधी अनेक विशेषताओ जाणवा आप आत्मधर्म जरूर मंगावो.
* बालविभागमां पण केटलीक विशेषताओ आवशे......तेमज भेटपुस्तक पण अपाशे.
लखो: आत्मधर्म कार्यालय, सोनगढ सौराष्ट्र ()
वर्द्धमानस्वामीना पगलांथी पावन थयेली वर्द्धमानपुरीमां
वर्द्धमानस्वामीनुं नुतन दि. जिनमंदिर
जिज्ञासु पाठकोने जाणीने आनंद थशे के, वर्द्धमान स्वामीना संबंधथी जेनुं नाम
वढ्ढमाण (वढवाण) पड्युं एवा वढवाणशहेरना मध्यभागमां वर्द्धमानस्वामीनुं नूतन भव्य
जिनमंदिर बंधाववानो मुमुक्षुओए निर्णय कर्यो छे. आ माटेनी सुंदर जग्या, दरबारगढमां
मध्यचोकमां वढवाणना ठाकोर साहेबनी मालिकीनुं जुनुं गाडीखानुं के जे मकानमां अगाउ
मामलतदारनी ओफिस हती–ते मकान, वढवाणना ठाकोरसाहेबे खास लागणीथी आपणा
मुमुक्षु–मंडळने वेचाण आपेल छे, तेनो दस्तावेज पण थई गयेल छे. हवे तुरतमां भव्य
जिनमंदिरनुं काम शरू थशे. एक तो वर्द्धमान स्वामीना पगलांथी पावन वढवाण, बीजुं
वीरनाथ प्रभुना निर्वाणनुं अढीहजारमुं वर्ष, अने त्रीजुं पू बेनश्री चंपाबेन जेवा
पवित्रात्मानी जन्मनगरी, एटले सर्वे जिज्ञासुओमां आ मंगल कार्य माटे खास उत्साह छे.
–मंगलकार्य वेलुं–वेलुं थाय–एवी भावना साथे वढवाणना मुमुक्षुओने धन्यवाद!
(वढवाणनी भूमिमां जैनधर्मनी केटलीक प्राचीन स्मृतिओ पण नजरे पडे छे.)

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: ४८ : आत्मधर्म : कारतक : २५००
जांबुडी–(गुजरात)मां कारतक सुद तेरसना रोज पद्मप्रभजिनेंद्रना जिनालय उपर
कळश अने ध्वजारोहण भव्य महोत्सवपूर्वक थयुं. आ प्रसंगे सोनगढथी पू. गुरुदेव
जांबुडी पधार्या हता ने नव दिवस रह्या हता. नव दिवस सुधी धार्मिक शिक्षणवर्ग
चालेल, तेमां हजारो जिज्ञासुओए उत्साहथी लाभ लीधो हतो. जांबुडी जेवा
नानकडा गाममां ठेरठेर वीतरागवाणीनी मीठी ज्ञानपरब चालती हती ने हजारो
जीवो अत्यंत प्रेमथी ज्ञानरसनुं पान करता हता. वीरनिर्वाणना पचीससो वर्षना
भव्य उत्सव माटे पण गुजरातने अने भाईश्री बाबुभाई तथा प्रमुखश्री
नवनीतभाई वगेरेने घणो उत्साह छे. गुजरात–सौराष्ट्र–कच्छना मुमुक्षुओ पण तेमां
साथ आपवा आतूर छे. पू. गुरुदेव जांबुडी पधारतां वीतरागविज्ञाननी घणी सारी
प्रभावना थई हती. गुरुदेव जांबुडीथी प्रस्थान करीने ता. ९मीए अमदावाद
पधारशे, अने त्यां चार दिवस रोकाईने ता. १३मी नवेम्बर (कारतक वद त्रीज)ना
रोज सोनगढ पधारशे.
मलकापुर–(महाराष्ट्र)मां महावीरनिर्वाणना २५०० मा वर्षना महोत्सव निमित्ते
शिक्षणशिबिर द्वारा तत्त्वज्ञाननो महान प्रचार गतमासमां थयो. ज्ञानना आ
महायज्ञमां हजारो जिज्ञासुओए ‘आनंद–उल्लासथी भाग लीधो हतो. अनेक
ग्रेज्युएटो, कोलेजियनो तथा शिक्षको अने विद्यार्थीओए घणा प्रेमथी जैनधर्मना
तत्त्वज्ञाननो अभ्यास कर्यो हतो. मलकापुरना युवानो शास्त्रस्वाध्यायना प्रेम माटे
पहेलेथी प्रसिद्ध छे. खरेखर आजना सुशिक्षित युवानो पण धर्मना अभ्यासमां जे
रस लई रह्या छे ते जैनसमाजनी उन्नतिनी निशानी छे. ‘जुवानिया धर्ममां रस
नथी लेता’ एवी वृद्ध माणसोनी जुनी वातने आजना उत्साही युवानोने धोई
नांखी छे. धन्य छे युवानोने! युवानो हजी पण वधु ने वधु जागो...ने जैनधर्मना
विजयध्वजने ऊंचे ऊंचे फरकावो.
विशेष आनंदनी बीजा वात ए छे के महाराष्ट्रमां समाज द्वारा १०१ नवी
जैन–पाठशाळाओ खोलवानो संकल्प कर्यो छे. महाराष्ट्रमां तत्त्वज्ञानप्रचार माटे खास
समिति नीमवामां आवी छे. जेमने विद्वाननी जरूर होय, साहित्यनी जरूर होय
शिक्षणशिबिर के पाठशाळा के खोलवी होय, तेमणे नीचेना सरनामे पत्रव्यवहार
करवो–
भगवान महावीर वीतरागविज्ञान – प्रचार समिति – महाराष्ट्र
ठि. अंतरीक्ष पार्श्वनाथ दि. जैनसंस्थान
पोस्ट शिरपुर (बाशीम, आकोला–महाराष्ट्र)

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• संसारसमुद्रथी तरवा माटे मुमुक्षुनुं वहाण •
आ भवसमुद्रनी मध्यमां, मोक्षने साधवा माटे मुमुक्षुने एक स्वद्रव्य ज शरणरूप
छे, बाकी बधा द्रव्यो अशरण–अध्रुव छे. आ माटे पंखीनुं द्रष्टांत आपतां आचार्यदेव
कहे छे के : जेम मधदरियामां वहाण उपर बेठेला पंखीने ते वहाण सिवाय बीजुं कोई
शरण नथी, बीजो कोई आधार नथी, एटले आकाशमां ते गमे तेटला चक्कर लगावे
पण अंते तो थाकी थाकीने ते वहाण उपर ज आवीने बेसे छे, वहाण सिवाय बीजुं
कोई तेने शरण के आश्रयरूप नथी. आकाशमां चक्कर लगावे पण त्यां तेने कोई
आश्रयस्थान नथी, आश्रयस्थान तो एक वहाण ज छे. नीचे चारेकोर पाणी ने उपर
आकाश–तेमां वहाण सिवाय कोई ज शरण नथी, एटले बीजी गतिनो निरोध करीने ते
वहाण उपर ज आवीने बेसे छे. जरा ऊडे तो ते वहाणनी आसपास ज ऊडे छे,
वहाणनो आश्रय छोडीने दूर जतुं नथी, ने अंते तो वहाण उपर ज आवीने बेसे छे.
तेम अहीं भवसमुद्रने तरवामां मुमुक्षुजीव ते पंखी छे ने शुद्धात्मा ते वहाण
छे...मुमुक्षुनी परिणति फरीफरीने शुद्धात्मामां एकाग्र थाय छे, केमके आ भवसमुद्रनी
मध्यमां मोक्षने साधवा माटे मुमुक्षुने एक पोतानो शुद्धात्मा ज ध्रुव शरणरूप छे. बाकी
बीजा बधा संयोगरूप भावो अध्रुव अने अशरण छे. मोक्षना मुसाफर मुमुक्षुने निज
शुद्धात्मारूपी वहाण सिवाय बीजुं कोई शरण नथी, बीजो कोई आधार नथी. एटले
अस्थिरताथी कदाच विकल्प थाय ने बर्हिभावरूपी गगनमां ऊडे तोपण स्वद्रव्यना ज
अवलंबननी बुद्धि होवाथी अंते तो परिणति शुद्धात्मामां ज आवीने ठरे छे, शुद्धात्मा
सिवाय बीजुं कांई शरणरूप के आश्रयरूप नथी. विकल्प आवे तो ते आकाशमां चक्कर
लगाववा जेवा छे. ते आश्रयरूप भासता नथी, शुद्धात्मा ज वहाण जेवो आश्रयरूप छे.
आ रीते मोक्षने माटे बीजी गतिनो निरोध होवाथी मोक्षार्थीनी परिणति स्वद्रव्यनुं ज
अवलंबन करे छे.

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फोन नं. ३४ आत्मधर्म Regd. No. G. 128
• दीवाळीना.मंगल.दीवडा •
* भेदज्ञानवडे उदय पामेलुं चैतन्यनुं मंगलमय सोनेरी सुप्रभात आत्माने
आनंद पमाडे छे ने ज्ञानप्रकाश वडे मुक्तिमार्गने प्रकाशित करे छे.
* श्री गुरु कहे छे – हे जीवो! अनादिथी मोहमां सूता...हवे तो जागो!
जागवानो आ अवसर आव्यो छे...माटे जागोने चैतन्यमय निजपदने संभाळो.
* आराधक–धर्मात्माना दर्शनथी मुमुक्षुना हृदयमांं जेवी आनंदनी उर्मि जागे
छे तेवी उर्मि जगतना बीजा कोई पण पदार्थमां जागती नथी.
* अपूर्व आत्मकल्याणनी प्राप्ति ते सत्संगनुं फळ छे. सत्संग निजकल्याण
माटे छे, जगतने देखाडवा माटे नथी. साचा सत्संगनुं फळ तत्काळ आवे ज.
* धर्मीने जोतां एम थाय छे के वाह! धन्य तमारो अवतार! अतीन्द्रिय
आत्माने स्वानुभवमां लईने तमे आनंदरूप थया छो, जिनेश्वरना
मार्गमां भळ्‌या छो.
* अशरीरी अतीन्द्रिय आनंदमय चैतन्यजीवन जीवनारा सिद्ध भगवंतो
जगतने सन्देश आपे छे के तमे पण भेदज्ञान करीने आवुं आनंदमय
चैतन्यजीवन जीवो.
* एकलुं अनुमान जेनुं स्वरूप नथी पण प्रत्यक्षज्ञान जेनुं स्वरूप छे एवा
आत्माने हे शिष्य! तुं जाण. रागथी पार थईने अतीन्द्रियज्ञान वडे
आत्माने अनुभवमां ले.
* कुंदकुंदस्वामी कहे छे के – हुं सर्वज्ञपरमात्मा सीमंधरनाथ पासेथी आ
सन्देश लाव्यो छुं, ते झीलीने तमे ज्ञानानंदस्वरूप आत्मामां उपयोगने वाळो.
* सम्यक् ज्ञान–दर्शन–चारित्ररूपे आत्मानुं परिणमन ते निर्वाणनो पंथ छे.
भगवंतो आवा पंथे निर्वाण पाम्या; हुं पण ते ज पंथे जाउं छुं.
* अंर्तस्वभावमां सन्मुखता करावीने महाआनंदनुं वेदन करावनारो
हितोपदेश जे संतोए आप्यो, ते संतोना उपकारने मुमुक्षुजीवो भूलता नथी.
प्रकाशक : (सौराष्ट्र) प्रत : ३५००
मुद्रक : मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय : सोनगढ (सौराष्ट्र) : कारतक (३६१)