Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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अहा, अतीन्द्रियसुखथी भरेला अगाध
चैतन्यनिधान जेमनी पासे खुल्ला हता एवा वीरनाथ
भगवानना आपणे वारस छीए...प्रभुजीए ते अगाध
चैतन्यनिधान आपणने पण सोंप्या छे; प्रभुना वंशमां
थयेला वीतरागी संतोए चैतन्यनिधान खोलवानी चावी
आपणने आपी छे. अहा, श्रीगुरुप्रतापे आ काळे आवा
अगाध चैतन्यनिधाननी प्राप्ति प्रभु वीरनाथना मार्गमां
आपणने थाय छे.
‘बाप एवा बेटा’ होय छे तेम आपणे पण परम
धर्मपिता वीरप्रभुनो वारसो लेवा माटे वीर थईने आत्माने
साधवानो छे. आत्मसाधक वीर स्वानुभूतिवडे वीरनाथनो
वीतरागी वारसो ल्ये छे. अहा, धनभाग्य छे के आपणे
वीरप्रभुना वारस छीए.
जय महावीर