Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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अढीहजारवर्ष पहेलां सिद्धालयमां सीधावेला महावीरनाथनो संदेश छे के शरीर
अने राग वगरनुं चैतन्यजीवन ते ज जीवनुं साचुं आनंदमय जीवन छे. रागनो
अनुभव ते जीवनुं जीवन नथी, रागनो अनुभव ते आत्मा नथी, ए तो अनात्मभाव
छे, भावमरण छे, चैतन्यनुं आनंदमय जीवन तेमां हणाय छे. भेदज्ञानवडे रागथी
भिन्न, इंद्रियोथी भिन्न, अतीन्द्रिय चैतन्यवस्तुनी अनुभूतिरूप जीवन ते ज आत्मानुं
साचुं जीवन छे, ते साचो आत्मा छे; तेमां जन्म–मरणनां दुःखनो अभाव छे; ते
चैतन्यजीवन आनंदथी भरेलुं छे. भाई! जैन थईने तुं एकवार आवुं वीतरागी जीवन
जीवतां शीख. तने महा आनंद थशे. वीतरागी संतो अने अरिहंतो–सिद्धो आवुं
वीतराग चैतन्यजीवन जीवे छे. ते ज साचुं जीवन छे.
चेतन–जीवन साचुं...चेतन जीवन...जीवी जाणे छे संतो साचुं जीवन...
सुतां रे जागतां ऊठतां बेसतां...हैडे रहे छे एनुं खूब रटन...
अहो, अतीन्द्रिय चैतन्यना अनुभवथी संतो अद्भुत जीवन जीवे छे, ते ज साचुं
जीवन छे. रागथी भिन्न चैतन्यजीवन धर्मीना अंतरमांथी एकक्षण पण खसतुं नथी.
जीव तो ज्ञान–आनंदमय सत्ता छे, ते पोतानी चैतन्यसत्ताथी जीवन जीवनारो
छे, तेनुं जीवन कांई इंद्रिय के मनना आधारे नथी. आवा आत्माने ओळखीने
चैतन्यना आश्रये जे ज्ञान–आनंदमय अतीन्द्रियभाव प्रगटयो ते ज जीवनुं साचुं जीवन
छे. आवुं जीवन धर्मी जीवे छे ने जगतने पण तेवा ज जीवननो उपदेश आपे छे.–आवुं
जीवन जीववुं ते महावीरनो संदेश छे. जे जीवनमां आत्मानी शांति आवे ने जेना फळमां
मोक्ष थाय, ते ज साचुं जीवन छे. अन्न–वस्त्र के शरीरने आधीन जीववुं ए कांई साचुं
जीवन नथी. सिद्धभगवंतो शरीर वगर ज साचुं सुखी जीवन जीवी रह्या छे.
आवुं अतीन्द्रिय आनंदमय चैतन्यजीवन अमे जीवीए छीए, अने तमे पण
एवुं आनंदमय चैतन्यजीवन जीवो–एम सिद्धप्रभुना समाचार छे. –जय महावीर