Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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वार्षिक वीर सं. र५००
लवाजम कारतक
चार रूपिया Nov. 1973
आसो वद अमासे भगवान श्री वीरनाथप्रभुना मोक्षगमननुं
अढीहजारमुं (२५०० मुं) वर्ष बेठुं. अभूतपूर्व सिद्धदशाने पामीने प्रभु मुक्त
थया. अनंतसुखनी प्राप्तिरूप सिद्धि, अने दुःखथी–संसारथी सर्वथा
छूटकारारूप मुक्ति, आवी दशा प्रभु आ दिवसे पाम्या; तेनुं स्मरण करवानो
आ दिवस छे. गौतम स्वामी आ दिवसे ज केवळज्ञान पामीने अरिहंत थया;
अने सुधर्मस्वामी आ दिवसे ज श्रुतकेवळी थया. देहातीत थईने
सिद्धभगवान एम प्रसिद्ध करी रह्या छे के अहो जीवो! संयोग अने शरीर
वगर ज देहातीत चैतन्यभावथी आत्मा पोते ज स्वयं सुखी छे...अतीन्द्रिय
आनंदरूप आत्मा पोते छे.–आवा अतीन्द्रिय ज्ञान–आनंद स्वरूप आत्माने
ओळखतां, पोते अतीन्द्रिय ज्ञानरूप थईने आनंदनो स्वाद आवे छे; –आ
वीरनाथनो मार्ग छे. आवो मार्ग जयवंत छे.
मोक्षना अढी हजारमा वर्षना मंगल–प्रारंभे दीवाळीनी बोणी तरीके
गुरुदेवे ए सिद्धपदना परम महिमापूर्वक कह्युं के अहो! आजे महावीरप्रभुना
मोक्षगमननुं २५०० मुं वर्ष बेठुं. अत्यारे आवो चोकखो वीरमार्ग पामीने,
सम्यग्दर्शन वडे (२+५) (सात) प्रकृतिना क्षयनो प्रारंभ करी दीधो ते
मंगळ छे. सात प्रकृति (२+५) तेना शून्य (००) नो प्रारंभ करवो, एटले
के सम्यक्त्वनी एवी अप्रतिहत आराधना करवी–के जेमां वच्चे भंग पड्या
वगर क्षायिकसम्यक्त्व थशे,–ते भगवानना मोक्षकल्याणकनी साची उजवणी
छे; ते अपूर्व आनंदमय मंगळ छे. साधकजीव सम्यक्त्वना अखंड दीवडा
प्रगटावीने दीवाळीनो महोत्सव करे छे. आवी आराधना शरू थई तेना
फळमां मोक्ष थशे.