Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : कारतक : २५००
ईन्द्रिय के मनथी कांई तेनुं जीवन नथी.–आवा आत्माने ओळखीने चैतन्यना आश्रये
जे ज्ञान–आनंदमय अतीन्द्रियभाव प्रगट्यो ते ज जीवनुं साचुं जीवन छे. आवुं जीवन
धर्मी जीवे छे, ने जगतने पण तेवा ज जीवननो उपदेश आपे छे.–आवुं जीवन जीववुं–
ते महावीरनो सन्देश छे. जे जीवनमां आत्मानी शांति आवे ने जेना फळमां मोक्ष थाय,
ए ज साचुं जीवन छे. अन्न–वस्त्र के ईन्द्रियोने आधीन जीववुं ए कांई साचुं जीवन
नथी.
अंतरनी अपूर्व अनुभूति,–ते बीजाने कई रीते बताववी!
धर्मात्मा चैतन्यजीवनथी जे आनंद अनुभवे छे तेनी ईन्द्रियज्ञानवाळा जीवोने
कल्पना आवी शकती नथी. जेम एक काचबो, लीलफूगथी ढंकायेला सरोवरमां पाणी
उपर आव्यो ने लीलफूगना पडमां तीराड पडतां उपर पूनमनो झगझगतो चंद्र जोयो.
आश्चर्यथी ते बीजा काचबाने तेडवा गयो ने कह्युं के में कंईक अद्भुत वस्तु जोई, चालो
तमने बतावुं. बधा काचबा पाणी उपर आव्या, पण त्यां तो लीलफूगनुं पड पाछुं भेगुं
थई गयुं हतुं एटले चंद्र न देखायो; बीजा काचबा कहेवा लाग्या के तें कांई जोयुं नथी, तुं
जूठुं कहे छे; तें जोयुं होय तो अमने बताव! पहेलो काचबो मनमां समज्यो के में तो
अपूर्व वस्तु जोई छे पण आ लोकोने कई रीते बतावुं! तेम धर्मी जीव अनंतकाळना
मोहनो पडदो चीरीने पोताना अतीन्द्रिय चैतन्यतत्त्वना दर्शनथी महा आनंदित थाय
छे. बीजा जीवोने पण कहे छे के आत्मा ईन्द्रियातीत महा आनंदथी भरेल तत्त्व छे, तेने
देखतां महा आनंद थाय छे. पण ईन्द्रियज्ञान द्वारा जीवो तेने देखी शकता नथी एटले
तेने तेनो विश्वास आवतो नथी; ते कहे छे के अमने तो आत्मानो आनंद कंई देखातो
नथी, तमे देख्यो होय तो अमने बतावो. ज्ञानी अंतरमां समजे छे के में तो
स्वानुभवथी अंतरमां चैतन्यवस्तुने साक्षात् जोई छे, तेना अतीन्द्रिय आनंदनो अपूर्व
स्वाद चाख्यो छे, पण बीजा ईन्द्रियज्ञानवाळा जीवोने ते कई रीते बतावुं? मोहनो
पडदो दूर करी चैतन्यआंख खोलीने पोते जुए तो आत्माना अपार महिमानी खबर
पडे. परमागम तो आत्माना महिमाने प्रसिद्ध करी–करीने बतावे छे.
परमागमनुं फरमान: सिद्धप्रभुना समाचार: चैतन्यजीवन
चैतन्यथी जातरूप थईने चैतन्यनो अनुभव थाय छे. रागमां रहीने चैतन्य–
वस्तुनो अनुभव थई शकतो नथी. चैतन्यनी अनुभूति थई ते पर्याय पोते चैतन्य–