: कारतक : २५०० आत्मधर्म : ३१ :
हे भव्य! हवे आवा भेदज्ञान बळवडे तारा आत्माने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप
मोक्षपंथमां तुं परिणमाव.
निर्मळपर्यायमां आत्माने स्थाप–एम कहो, के आत्माना स्वभावमां पर्यायने
एकाग्र कर–एम कहो, बंनेनुं तात्पर्य एक ज छे; द्रव्य पर्यायनी अभेद अनुभूतिमां
‘आ पर्याय ने आ द्रव्य’ एवा विकल्पो नथी, भेद नथी. जे आवी अनुभूति करे तेणे
पोताना आत्माने मोक्षमार्गमां स्थाप्यो छे.
जुओ, अहीं “दर्शन–ज्ञान–चारित्रना परिणामने तुं आत्मा तरफ वाळ”–एम
कहेवाने बदले, “तारा आत्माने दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां स्थाप”–एम कह्युं, एटले
रत्नत्रयनी मोक्षमार्गपर्यायरूपे तारा आत्माने परिणमावीने तेमां ज आत्माने स्थाप.
पहेलांं बीजी गाथामां, ‘दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां जे स्थित छे ते स्वसमय छे’ एम कह्युं
तेनो ज आ उपदेश छे.
कोई कहे: पर्याय तो अस्थिर छे तेमां आत्माने स्थापवानुं केम कहो छो? तो कहे
छे के ज्यां द्रव्य–पर्यायना भेदनो विकल्प छोडीने अभेदअनुभूतिरूप थयो त्यां आत्मा
नवी–नवी सम्यक्त्वादि निर्मळपर्यायरूपे ज परिणम्या करे छे एटले ते आत्मा
मोक्षमार्गमां ज निश्चल रहे छे; तेथी तेणे मोक्षमार्ग पर्यायमां पोताना आत्माने निश्चल
स्थाप्यो छे.
हे भाई! तुं अत्यारसुधी परमां वळ्यो–हवे तुं स्वमां वळ! परमां पण तुं तारा
अपराधथी ज वळ्यो हतो, ने हवे स्वमां तुं तारा गुणथी ज (–भेदज्ञानना बळथी ज)
वळ.
“जे स्वरूप समज्या विना, पाम्यो दुःख अनंत”
–जुओ, आ स्वरूपनी अणसमजण ते बंधपंथ छे. अने–
“समजाव्युं ते पद नमुं श्री सद्गुरु भगवंत”
–गुरुउपदेशअनुसार पोते पोतानुं स्वरूप समज्यो ते मोक्षपंथ छे.
संसारमां रखड्यो ते पोताना दोषथी; दोष केटलो?–के परद्रव्यने पोतानुं मान्युं
तेटलो. स्व परना भेदज्ञानरूप प्रज्ञागुणवडे जीव पोते ज पोताने बंधमार्गथी पाछो
वाळीने मोक्षपंथमां स्थापे छे. अनादिथी बंधमार्गमां रह्यो होवा छतां