Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : कारतक : २५००
चैतन्यतत्त्व ज्यां प्रतीतमां आवी गयुं त्यां तेना अनंत गुणोमांथी शुद्धतानो प्रवाह
नीकळ्‌यो; स्वर्गना ईन्द्र पण ते सम्यक्त्वनी प्रशंसा करे छे. चारित्रदशावंत मुनिना
महिमानी तो शी वात! ए तो महा पूज्य छे. अने सम्यग्दर्शननो पण अमूल्य महिमा
छे; सम्यग्द्रष्टि असंयमी होय तोपण भगवाने तेने मोक्षमार्गमां स्वीकार्या छे.
सम्यग्द्रष्टिजीव कल्याणनी परंपरा सहित उत्तम मोक्षसुखने पामे छे.
जेने शुभराग अने संयोग करतां सम्यक्त्वनी किंमत ओछी लागे छे, ने
सम्यक्त्व करतां रागनी के संयोगनी किंमत जेने वधारे लागे छे ते जीव सम्यक्त्वनो
विराधक थईने संसारमां परिभ्रमण करे छे. जे जीव सम्यक्त्वनो आराधक छे तेने
आत्मा करतां जगतना कोई पदार्थनो महिमा लागतो नथी, आत्माना अपार–
अतीन्द्रिय महिमारूप सम्यग्दर्शनवडे ते परंपरा अक्षय सुखरूप मोक्षने पामे छे.
अहा, सम्यक्त्वना महिमानी आवी वात सांभळवानो अवसर मळवो पण बहु
मोंघो छे. आवुं श्रावककुळ अने वीतरागनी वाणीनुं श्रवण मळ्‌युं, तो आ उत्तम अवसर
पामीने आत्माना श्रद्धा–ज्ञान करी लेवा, ते ज आ उत्तम मनुष्यपणुं पामवानुं साचुं फळ छे.
सम्यक्त्व वगर आवा मनुष्य शरीर तो अनंतवार जीवने मळ्‌या, पण तेनाथी
आत्मानुं कांई हित न थयुं. शरीर तो क्षणभंगुर छे, करोडो रोगथी भरेलुं छे. क््यारे
रोगथी कू थईने ऊडी जशे! एनो कोई मेळ नथी. अंदर आत्मा तेनाथी भिन्न शुं चीज
छे–तेनी ओळखाण करे तो मनुष्यपणुं पामवानी सफळता छे.
‘शरीरं व्याधि–
मंदिरम्’ अने ‘आत्मा आनंदमंदिरम्’ छे. बापु, शरीर तो करोडो रोगनी व्याधिनुं
घर छे, तेमांथी तो रोग नीकळशे, तेमांथी कांई आनंद नहीं नीकळे; शांतिनुं–आनंदनुं
मंदिर तो आत्मा छे; तेने श्रद्धामां लेतां अपूर्व आनंद थाय छे. ते सम्यग्द्रष्टिजीव
आत्माना सुखरसने पीतो–पीतो मोक्षदशाने साधे छे.
अहा! अनंतकाळना दुःखनो अंत, अने अनंत–अनंत काळना
अतीन्द्रियसुखनी शरूआत–सम्यग्दर्शनमां छे; आवा सम्यग्दर्शनने माटे तो
आत्मानो केटलो रस होय! आत्मानी घणी लगनी ने घणो प्रयत्न होय,
त्यारे सम्यग्द्रर्शन थाय छे.
शुद्ध आत्मस्वभावनी सन्मुख थईने तेने कबुलतां सम्यग्दर्शन ने
सम्यग्ज्ञानरूपे आत्मा पोते परिणमे छे; एटले सम्यग्दर्शन ते आत्मा ज छे.
–आवा सम्यग्दर्शननो महिमा प्रसिद्ध करीने कुंदकुंदाचार्यदेव कहे छे के अहो
जीवो! तमे आवा सम्यग्दर्शननी आराधनावडे मनुष्यपणाने सफळ करो.
–जय महावीर