छे. आ आठमो लेख छे. वीतरागमार्गना परमागमनी प्रसादी
केटली सुंदर–मधुर–आनंददायी छे! तेनो स्वाद तो जे चाखे तेने ज
खबर पडे तेवुं छे. प्रवचनमां गुरुदेव कहे छे के–बापु! जैनधर्ममां
तो वीतरागी देव–गुरुनुं सेवन छे; तेमने ओळखतां, परमार्थ
आत्मानी ओळखाण थाय ने अंदर पोताने चैतन्यरसना
अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद आवे,–एवो आ जैनमार्ग छे. अरे,
आवो उत्तम मार्ग पामीने कुमार्गने कोण सेवे? बापु! आवो
जैनमार्ग अनंतकाळे कोई महाभाग्यथी मळ्यो छे. तारी दर्शनशुद्धि
माटे, तारा कल्याणने माटे तुं परम सत्य वीतरागमार्गना देव–
गुरु–शास्त्रने बराबर ओळखीने, तेमना मार्गनुं उत्साहथी सेवन करजे.
चैतन्यसुखमय आत्मा, ने बीजीकोर समस्त राग अने विषयो–
एम बंनेनुं सर्वथा भेदज्ञान करावीने जिनवचन विषयोनुं
विरेचन करावे छे ने चैतन्यसुखनो उत्साह जगाडे छे.–अहो,
चैतन्यनुं सुख आपनारां आवां जिनवचनो महान उपकारी छे.
एम नथी. द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे थईने सत् वस्तुनी पूर्णता छे.