Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २५०० आत्मधर्म : ४१ :
वीतरागमार्गनो विरोध करीने जेओ कुमार्गमां प्रवर्ते छे तेओ जैनमार्गथी भ्रष्ट छे.
धर्मात्मा सत्यमार्गने प्रसिद्ध करे अने असत्यमार्गने निषेधे, तेथी कांई कोई
व्यक्ति प्रत्ये तेने विरोध नथी. सर्वे जीवो ज्ञानमय छे,–ए अपेक्षाए तो बधा जीवो
सहधर्मी छे. अज्ञानीओ पोताना स्वभावने भूलीने संसारमां दुःखी थई रह्या छे,
तेमना प्रत्ये तो धर्मीने करुणा होय छे.
चैतन्यनो उत्साह छूटीने क्यांय परनो उत्साह धर्मीने थतो नथी. अहो,
चैतन्यने साधवानो आवो वीतराग जैनमार्ग, एनो उत्साह, एनी प्रशंसा, एनी
आराधना करवा जेवी छे. भाई, आवा सुंदर वीतराग जिनमार्गने साधवा माटे तुं
जगतना कुमार्गथी छूटो पडी जा. शुद्ध जैनमार्ग सिवाय बीजा सामे जोईश मा.
जैनधर्मनी मूर्ति तो वीतराग होय, दिगंबर होय. जैनमुनिनो देखाव परम वीतराग
होय छे, एनी अंतरनी दशा तो शुद्धोपयोगमय अलौकिक, ने बहारनी निर्ग्रंथ दशा पण
अलौकिक होय छे.
• महाभाग्ये जैनधर्म मळ्‌यो....उत्साहथी तेनुं सेवन कर! •
अहा, देव–गुरु–धर्म तो सर्वोत्कृष्ट पदार्थ छे, तेमनी ओळखाणना आधारे तो
धर्म अने मोक्षमार्ग छे; तेथी तेमनी बराबर ओळखाण करवी जोईए. देव–गुरु–
धर्मनी बाबतमां शिथिल थवुं योग्य नथी. अरे, वीतरागी जैन देव–गुरुओ, तेमने
छोडीने बीजा अज्ञानी–कुगुरुओने जे वंदन–पूजन करे छे ते तो धर्मना निमित्तने छोडीने
संसारना मार्गने सेवे छे, ते वीतरागी देव–गुरुथी प्रतिकूळ थयो, वीतराग जैनमार्गथी
भ्रष्ट थयो.
बापु! जैनधर्ममां तो वीतरागी देव–गुरुनुं सेवन छे; तेमने ओळखतां परमार्थ
आत्मानी ओळखाण थाय ने अंदर पोताने चैतन्यरसना अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद
आवे,–एवो आ जैनमार्ग छे. अरे, आवो उत्तम मार्ग पामीने कुमार्गने कोण सेवे?
बापु! आवो जैनमार्ग अनंतकाळे कोई महाभाग्यथी मळ्‌यो छे. तारी दर्शनशुद्धि माटे,
तारा कल्याण माटे तुं परमसत्य वीतरागमार्गना देव–गुरु–शास्त्रने बराबर ओळखीने,
तेमना मार्गनुं उत्साहथी सेवन करजे.
सम्यग्द्रष्टिने भले मुनिदशा–चारित्रदशा न होय तोपण तेनी श्रद्धामां तेने तेनो
स्वीकार छे के जैनमार्गमां चारित्रदशा आवी होय. एनाथी विरूद्ध चारित्रदशाने धर्मी
मानतो नथी. देवनुं स्वरूप जे विपरीत माने, मुनिनी चारित्रदशाने जे विपरीत