सहधर्मी छे. अज्ञानीओ पोताना स्वभावने भूलीने संसारमां दुःखी थई रह्या छे,
तेमना प्रत्ये तो धर्मीने करुणा होय छे.
आराधना करवा जेवी छे. भाई, आवा सुंदर वीतराग जिनमार्गने साधवा माटे तुं
जगतना कुमार्गथी छूटो पडी जा. शुद्ध जैनमार्ग सिवाय बीजा सामे जोईश मा.
जैनधर्मनी मूर्ति तो वीतराग होय, दिगंबर होय. जैनमुनिनो देखाव परम वीतराग
होय छे, एनी अंतरनी दशा तो शुद्धोपयोगमय अलौकिक, ने बहारनी निर्ग्रंथ दशा पण
अलौकिक होय छे.
धर्मनी बाबतमां शिथिल थवुं योग्य नथी. अरे, वीतरागी जैन देव–गुरुओ, तेमने
छोडीने बीजा अज्ञानी–कुगुरुओने जे वंदन–पूजन करे छे ते तो धर्मना निमित्तने छोडीने
संसारना मार्गने सेवे छे, ते वीतरागी देव–गुरुथी प्रतिकूळ थयो, वीतराग जैनमार्गथी
भ्रष्ट थयो.
आवे,–एवो आ जैनमार्ग छे. अरे, आवो उत्तम मार्ग पामीने कुमार्गने कोण सेवे?
बापु! आवो जैनमार्ग अनंतकाळे कोई महाभाग्यथी मळ्यो छे. तारी दर्शनशुद्धि माटे,
तारा कल्याण माटे तुं परमसत्य वीतरागमार्गना देव–गुरु–शास्त्रने बराबर ओळखीने,
तेमना मार्गनुं उत्साहथी सेवन करजे.
मानतो नथी. देवनुं स्वरूप जे विपरीत माने, मुनिनी चारित्रदशाने जे विपरीत