Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २५०० आत्मधर्म : ४३ :
महावीरनिर्वाणना अढीहजारमा वर्ष निमित्ते –
मात्र विद्यार्थी बंधुओ माटे स्वाध्यायनी सुंदर योजना
स्कूलमां के कोलेजमां जेओ अभ्यास करता होय एवा विद्यार्थी भाई–बहेनोने
वीतरागी साहित्यना वांचनमां उत्साह प्रेरवा माटे नीचेनी योजना रजु करवामां आवे
छे: तमे बालविभागना सभ्य हो के न हो–पण आ योजनामां भाग लेतां तमने जरूर
लाभ थशे:–
आत्मधर्मना आ अंकमां छपायेला लखाणोमांथी दश वाक्यो अहीं आप्यां छे; ते
अधूरां छे, तेनो बाकीनो भाग आ अंकमांथी शोधीने तमारे पूरो करवानो छे. अंक
तमारा हाथमां ज छे; शोधवा मांडो. (वडीलोने खास विनति के आ शोधखोळ विद्यार्थी
पासे ज करावजो, आप तेने शोधी आपशो नहि.) डीसेम्बरनी पहेली तारीख सुधीमां
वाक््य शोधीने मोकलनार बधाने गुरुदेवनो एक फोटो अगर पुस्तक भेट मोकलाशे.
(संपादक आत्मधर्म, सोनगढ सौराष्ट्र: ए सरनामे मोकलवुं.)
१.
आत्मानो आनंदरस एवो अद्भुत छे के..........
२. परमागम–मंदिरनो महोत्सव नजीक आवी रह्यो छे त्यारे वीरनाथ...
३. वाह रे वाह! वीतरागी संतोनी वाणी! आवी वीतराग..........
४. अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, जिनालय,...........
५. अहो! जाणे परम वात्सल्यथी गुरुदेवे सम्यक्..........
६. मुमुक्षु जीवोए पळे पळे........
७. तीर्थंकर थनार जीव...........
८. साधकजीव सम्यक्त्वना अखंड दीवडा प्रगटावीने..............
९. क्षायिक साथे जोडणीवाळुं सम्यक्त्व ते पण क्षायिक जेवुं ज छे; ए वात........
१०. अहो, वीरप्रभुना मोक्षनुं आ अढी हजारमुं वर्ष छे; भगवाननो मार्ग......
(आ दशमा वाक्य माटे जुओ पानुं –२)
बंधुओ, आपणा बालविभागमां नवेसरथी सुंदर आयोजन थई रह्युं छे, ते
आप सौ आ अंकमां जोशो. तमारो सौनो प्रेमभर्यो सहकार पण जरूरी छे. आपणा
महान भाग्ये, आपणा जीवनमां ज वीरनाथभगवानना मोक्षगमनना अढीहजारवर्षनो