Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ४४ : आत्मधर्म : कारतक : २५००
मंगलमहोत्सव आव्यो छे, तेनो आपणे सौए खूब लाभ लेवानो छे, ने जैनशासननी
खूब–खूब सेवा करीने जैनशासनने दीपाववानुं छे.
बालविभागनुं लीस्ट नवेसरथी लखीने तैयार करवानुं छे. तो तमारुं नाम–
सरनामुं, हालनी उमर–अभ्यास, जन्मदिवस तथा सभ्यनंबर पोस्टकार्डमां (आत्म–
धर्म बालविभाग, सोनगढ–सौराष्ट्र) ए सरनामे जेम बने तेम वेलासर लखी
मोकलशो. घणा सभ्यो मोटा थया हशे, तेओ पण विना संकोचे पोतानी विगत लखी
मोकलशो. आपनुं पोस्टकार्ड आवतावेंत अमे आपने एक सुंदर पुस्तक (आ
अढीहजारमा वर्षनी बोणीमां) भेट मोकलीशुं. नवा सभ्य थवुं होय तेओ पण उपर
मुजबनी विगत लखी मोकलशो. (सभ्य फी कांई नथी)
आ उपरांत आत्मधर्ममां रजु थती अवनवी योजनाओमां पण तमे आनंदथी
ने उत्साहथी भाग लेजो. जीवनमां तमने घणा सुंदर संस्कार मळशे.
–ली
तमारो भाई ब्र. ह. जैन
(सर्वे जिज्ञासु साधर्मीओ उत्साहथी भाग ल्यो)
१. महावीर भगवाननी ओळखाणथी आपणने थतो महान लाभ
२. महावीर प्रभुना निर्वाणगमनना अढी हजारमा वर्षमां
आत्महित माटे आपणुं कर्तव्य
बंधुओ, महावीर प्रभुना मोक्षगमननुं अत्यारे अढीहजारमुं (२५०० मुं) वर्ष
चाली रह्युं छे. वीर प्रभुनो मार्ग अत्यारे पण चाली ज रह्यो छे. आपणा महान सुभाग्ये
आपणे वीरशासनमां आव्या, आपणने वीरनाथनो सुंदर मार्ग गुरुदेवे बताव्यो; अने
विशेषमां प्रभुना मोक्षगमनना अढीहजार वर्षना महोत्सवनो प्रसंग पण अत्यारे
आपणा जीवनमां आव्यो. आपणे बहु उत्साहपूर्वक धर्मना रंगथी, जैनशासनना