Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ४६ : आत्मधर्म : कारतक : २५००
वीरनाथना मोक्षनुं अढीहजारमुं वर्ष चाले छे.....आपणे वीरनां संतान छीए,
एटले आपणे पण वीर थईने वीरनाथना मार्गे जवानुं छे.
ज्यारे वज्रदंत चक्रवर्तीने संसारथी वैराग्य थयो अने पुत्रने बोलावीने कह्युं के
बेटा! हवे आ राज्यभारने तुं संभाळ. हुं राज्य छोडीने मुनि थवा मांगुं छुं.–त्यारे
वैराग्यवंत राजकुमारे नम्रतापूर्वक कह्युं–के पिताजी! आप आ राज्यने शा माटे छोडी
रह्या छो?
वजदन्त कहे छे:–बेटा, आ विनाशी राज्यने छोडीने हुं अविनाशी मोक्षसुखने
साधवा मांगुं छुं. आ राज्य तो अनंतवार भोगवी चुकेल एठसमान छे. जे आत्म सुख
मुनिपणामां छे, ते कांई राजपदमां नथी, तेथी हुं तेने छोडी रह्यो छुं.
पुत्र गंभीरताथी कहे छे–वाह रे वाह, पिताजी! आप जेने एठ समान समजीने
छोडी रह्या छो तेने हुं शा माटे खाउं? आपनी जेम में पण आत्मसुखने जाण्युं छे,
एटले हुं पण आपनी साथे ज असार संसारने छोडीने, मुनि थईश ने मोक्षसुखने
साधीश.
–आनुं नाम–‘बाप जेवा बेटा! ’
आपणे पण नाना नथी हो! आपणे महावीरनां संतान छीए.
आपणे पण महावीरप्रभुनी जेम मोक्षपुरीना मार्गे जवानुं छे.
चित्रकार बंधुओने–
आपणा आत्मधर्म माटे, तेमज बीजा बालसाहित्य माटेनां धार्मिक चित्रो
(ब्लोकस बनाववा माटे) करी आपे एवा जैन चित्रकार भाईनी खास जरूर छे.
चित्रनी संपूर्ण माहिती सहित काची रूपरेखा अमे आपीशुं ते उपरथी डीझाईन करी
आपवानी रहेशे, तेनो सुयोग्य चार्ज आपीशुं. आपनी कळानो धार्मिक साहित्यमां
उत्तम उपयोग थशे. तो जे कलाकार जैनभाई धार्मिक साहित्यमां पोतानी सेवा आपवा
तैयार होय तेमणे नीचेना सरनामे पत्रव्यवहार करवा आमंत्रण छे.
–ब्र. हरिलाल जैन, सोनगढ सौराष्ट्र ()