Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २५०० आत्मधर्म : ४७ :
आत्मधर्म – मासिक
* भारतनुं अजोड अध्यात्मिक सचित्र मासिक.....पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी
आत्महितनो अपूर्व संदेश घर–घर पहोंचाडे छे, नाना बाळकोमां पण धर्मना मोटा
संस्कार रेडे छे.
* वार्षिक (कारतकथी आसो, भेट पुस्तकसहित) लवाजम चार रूपिया छे.
* दरमहिनानी दशमी तारीखे सोनगढथी पोस्ट थाय छे.
* आ अंकनी साथे ३१मा वर्षनो प्रारंभ थाय छे. आपनुं लवाजम आपे भरी दीधुं
हशे. सगां–स्नेही–जिज्ञासुओने पण आत्मधर्म पहोंचाडीने तेमने उत्तम धर्मसंस्कार
आपो.
* आ वर्ष वीरनाथप्रभुना मोक्षनुं पचीससोमुं वर्ष छे, तेमज सोनगढमां परमागम
मंदिरमां देव–गुरु–शास्त्रनी महान प्रतिष्ठानो मोटो उत्सव पण आवी रह्यो छे, ते
संबंधी अनेक विशेषताओ जाणवा आप आत्मधर्म जरूर मंगावो.
* बालविभागमां पण केटलीक विशेषताओ आवशे......तेमज भेटपुस्तक पण अपाशे.
लखो: आत्मधर्म कार्यालय, सोनगढ सौराष्ट्र ()
वर्द्धमानस्वामीना पगलांथी पावन थयेली वर्द्धमानपुरीमां
वर्द्धमानस्वामीनुं नुतन दि. जिनमंदिर
जिज्ञासु पाठकोने जाणीने आनंद थशे के, वर्द्धमान स्वामीना संबंधथी जेनुं नाम
वढ्ढमाण (वढवाण) पड्युं एवा वढवाणशहेरना मध्यभागमां वर्द्धमानस्वामीनुं नूतन भव्य
जिनमंदिर बंधाववानो मुमुक्षुओए निर्णय कर्यो छे. आ माटेनी सुंदर जग्या, दरबारगढमां
मध्यचोकमां वढवाणना ठाकोर साहेबनी मालिकीनुं जुनुं गाडीखानुं के जे मकानमां अगाउ
मामलतदारनी ओफिस हती–ते मकान, वढवाणना ठाकोरसाहेबे खास लागणीथी आपणा
मुमुक्षु–मंडळने वेचाण आपेल छे, तेनो दस्तावेज पण थई गयेल छे. हवे तुरतमां भव्य
जिनमंदिरनुं काम शरू थशे. एक तो वर्द्धमान स्वामीना पगलांथी पावन वढवाण, बीजुं
वीरनाथ प्रभुना निर्वाणनुं अढीहजारमुं वर्ष, अने त्रीजुं पू बेनश्री चंपाबेन जेवा
पवित्रात्मानी जन्मनगरी, एटले सर्वे जिज्ञासुओमां आ मंगल कार्य माटे खास उत्साह छे.
–मंगलकार्य वेलुं–वेलुं थाय–एवी भावना साथे वढवाणना मुमुक्षुओने धन्यवाद!
(वढवाणनी भूमिमां जैनधर्मनी केटलीक प्राचीन स्मृतिओ पण नजरे पडे छे.)