Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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• संसारसमुद्रथी तरवा माटे मुमुक्षुनुं वहाण •
आ भवसमुद्रनी मध्यमां, मोक्षने साधवा माटे मुमुक्षुने एक स्वद्रव्य ज शरणरूप
छे, बाकी बधा द्रव्यो अशरण–अध्रुव छे. आ माटे पंखीनुं द्रष्टांत आपतां आचार्यदेव
कहे छे के : जेम मधदरियामां वहाण उपर बेठेला पंखीने ते वहाण सिवाय बीजुं कोई
शरण नथी, बीजो कोई आधार नथी, एटले आकाशमां ते गमे तेटला चक्कर लगावे
पण अंते तो थाकी थाकीने ते वहाण उपर ज आवीने बेसे छे, वहाण सिवाय बीजुं
कोई तेने शरण के आश्रयरूप नथी. आकाशमां चक्कर लगावे पण त्यां तेने कोई
आश्रयस्थान नथी, आश्रयस्थान तो एक वहाण ज छे. नीचे चारेकोर पाणी ने उपर
आकाश–तेमां वहाण सिवाय कोई ज शरण नथी, एटले बीजी गतिनो निरोध करीने ते
वहाण उपर ज आवीने बेसे छे. जरा ऊडे तो ते वहाणनी आसपास ज ऊडे छे,
वहाणनो आश्रय छोडीने दूर जतुं नथी, ने अंते तो वहाण उपर ज आवीने बेसे छे.
तेम अहीं भवसमुद्रने तरवामां मुमुक्षुजीव ते पंखी छे ने शुद्धात्मा ते वहाण
छे...मुमुक्षुनी परिणति फरीफरीने शुद्धात्मामां एकाग्र थाय छे, केमके आ भवसमुद्रनी
मध्यमां मोक्षने साधवा माटे मुमुक्षुने एक पोतानो शुद्धात्मा ज ध्रुव शरणरूप छे. बाकी
बीजा बधा संयोगरूप भावो अध्रुव अने अशरण छे. मोक्षना मुसाफर मुमुक्षुने निज
शुद्धात्मारूपी वहाण सिवाय बीजुं कोई शरण नथी, बीजो कोई आधार नथी. एटले
अस्थिरताथी कदाच विकल्प थाय ने बर्हिभावरूपी गगनमां ऊडे तोपण स्वद्रव्यना ज
अवलंबननी बुद्धि होवाथी अंते तो परिणति शुद्धात्मामां ज आवीने ठरे छे, शुद्धात्मा
सिवाय बीजुं कांई शरणरूप के आश्रयरूप नथी. विकल्प आवे तो ते आकाशमां चक्कर
लगाववा जेवा छे. ते आश्रयरूप भासता नथी, शुद्धात्मा ज वहाण जेवो आश्रयरूप छे.
आ रीते मोक्षने माटे बीजी गतिनो निरोध होवाथी मोक्षार्थीनी परिणति स्वद्रव्यनुं ज
अवलंबन करे छे.