Atmadharma magazine - Ank 362
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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महावीर–निर्वाणनुं अढीहजारमुं मंगलवर्ष
३६२
सम्यग्दर्शन उपरांत ज्यारे अंतरमां आत्मस्वरूपमां
घणी लीनता थाय त्यारे मुनिदशा होय छे. सम्यग्द्रष्टिने
आवी मुनिदशानी निरंतर भावना होय छे. अहो
मुनिदशानी शी वात! एमनी शुद्धता ने एमनुं सुख तो
सर्वार्थसिद्धना देव करतांय विशेष छे. ए तो परमेष्ठी पद छे,
अरिहंतो अने सिद्धोनी साथे नमस्कारमंत्रमां एमनुं नाम
आवे छे; सम्यग्द्रष्टि जीवो पण दासानुदासपणे परम
भक्तिथी एमना चरणोमां मस्तक झुकावे छे. वाह, ए
मुनिदशा! अरे, सम्यग्दर्शन पण अपूर्व दशा छे त्यां
मुनिदशानी तो शी वात! मुनिवरो तो आत्माना महा
आनंदना झूले झूली रह्या छे. अहो! ए तो संत–परमेश्वर छे,
परम गुरु छे, मोक्षना उग्रपणे साधक छे, सिद्धपदना
पाडोशी छे. सम्यग्द्रष्टि जीव आवा मुनिनो भक्त होय छे; ने
ते सम्यग्द्रष्टिनी दशा पण अलौकिक होय छे.
तंत्री : पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २५०० मागशर (लवाजम : चार रूपिया) वर्ष ३१ : अंक र