Atmadharma magazine - Ank 362
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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सोनगढ :– पू. गुरुदेव सुखशांतिमां बिराजे छे. सवारे प्रवचनमां बोधप्राभृत
चाले छे. बपोरे समयसार–परिशिष्टमां ४७ शक्तिनुं वर्णन तुरतमां शरू थशे. हमणां
प्रवचनमां वारंवार गुरुदेव महावीरप्रभुना मोक्षगमनना अढीहजारवर्षना उत्सवने
याद करीने, महावीरशासननो घणो महिमा समजावे छे, ने तेनी साची प्रभावना कई
रीते थाय तेनुं खास विवेचन करे छे. तेमां सौथी पहेलुं मूळभूत ए छे के महावीरप्रभु
कई रीते मोक्ष पाम्या ने तेमणे कहेलां तत्त्वोनुं साचुं स्वरूप शुं छे ते ओळखवुं जोईए.
बाकी महावीरप्रभुना नामे जो विपरीत तत्त्वनी के विपरीत मार्गनी प्ररूपणा थती होय
तो तेमां जैनशासननी प्रभावना कयांथी थाय? माटे, महावीरप्रभुना मोक्षनो उत्सव
उजवनारनी जवाबदारी ए छे के प्रथम तो ते जैनतत्त्वना साचा स्वरूपनो जाणकार
होवो जोईए. अने आवो सुंदर अवसर जैनसमाजना बधा लोको हळीमळीने परस्पर
सहकारपूर्वक ऊजवे ते सारूं ज छे. तेमां कोई पण जैननो विरोध होई शके नहीं.
आपणा महावीरप्रभुना मोक्षनो उत्सव आपणे नहि ऊजवीए तो कोण उजवशे?
बीजी एक वात गुरुदेव ए कहे छे के–जेने जैनधर्मनो रंग होय, वीतराग देव–
गुरुनी परम भक्ति होय, ने अन्य कुमार्गना सेवनथी जीवनुं केटलुं अहित थाय छे
तेनो ख्याल होय, एवा कोई जैनगृहस्थ पोतानी पुत्रीने जैन सिवाय अन्यमतमां
आपे नहि; श्रावकाचारमां पण तेनुं खास वर्णन आवे छे. घणी लागणीथी गुरुदेव कहे
छे के अरे, बाळपणथी १५–२० वर्ष सुधी जे दीकरी जैन संस्कारमां ऊछरी होय, तेने
मान–आबरू के धनवैभव खातर कुधर्मना कुवामां नाखी देवी–(ज्यां एने भगवानना
दर्शन पण न मळे) ए तो पोताने ज धर्मना प्रेमनो अभाव सूचवे छे. धनवैभववाळा
कुधर्मीना घर करतां तो गरीब साधर्मीनुं घर सारुं. बस, व्यवहारनी आ वातमां ‘थोडुं
लख्युं पण घणुं करीने वांचजो.’
[एवी पण अनेक धर्मसंस्कारी कुमारी–बहेनोना प्रसंग सांभळ्‌या छे के जेणे
पोते, अन्यधर्मनुं घर गमे तेवुं मोटुं होय तोपण, अन्यधर्मी साथे पोताना विवाह माटे
द्रढपणे ईन्कार करी दीधो होय, ने ए रीते पोताना धर्मसंस्कारनुं अडगपणुं राख्युं होय.
एटले धर्मसंस्कारी बहेनोए पोते पण आ बाबतमां जागवुं जोईए. अने आपणा
युवान बंधुओए पण धन के रूपने गौण गणीने, धर्मसंस्कारनी मुख्यता राखीने
पसंदगी करवी जोईए.
] [विशेष माटे जुओ पानुं ३७]