: मागशर : रप०० आत्मधर्म : १ :
* महावीरप्रभुना मोक्षगमननुं अढी हजारमुं वर्ष *
वार्षिक वीर सं. २५००
लवाजम मागशर
चार रूपिया Dece. 1973
* वर्ष ३१ : अंक २ *
महावीर प्रभुना मार्गनी प्रभावना केम थाय?
अहिंसा...अनेकान्त...अपरिग्रह
प्रश्न:– हालमां महावीरप्रभुना मोक्षगमननुं अढीहजारमुं वर्ष चाली
रह्युं छे, तो महावीरप्रभुना मार्गनी प्रभावना केम थाय?
उत्तर:– अहिंसा, अनेकान्त अने अपरिग्रहभाव वडे महावीरप्रभुना
मार्गनी प्रभावना थाय छे.
प्रश्न:– महावीरप्रभुना मार्गनी अहिंसा केवी छे?
उत्तर:– प्रभुए कहेलुं जीव–अजीवनुं स्वतंत्र भिन्न स्वरूप जाणीने
भेदज्ञान अने वीतरागता प्रगट करवी ते प्रभुना मार्गनी
साची अहिंसा छे; जेणे आवी अहिंसा करी–तेणे मिथ्यात्व के
रागादि वडे आत्माना चैतन्यभावने न हण्यो, ते ज साची
अहिंसा छे. ज्यां आवी वीतरागी अहिंसानो भाव होय त्यां
परजीवने हणवानी हिंसावृत्ति होय ज नहि. आवा अहिंसा
धर्मनी ओळखाण अने प्रचारवडे प्रभुना मोक्षनुं अढी हजारमुं
वर्ष उजववा योग्य छे. अहो, वीरनाथे कहेली सूक्ष्म अहिंसा
केवी अजब–अलौकिक छे तेनी जगतने खबर नथी. आवा
लोकोत्तर अहिंसाधर्मनो प्रचार करवा जेवुं छे, तेमां कोई पण
जैनने विरोध होय नहीं.