: र : आत्मधर्म : मागशर : रप००
प्रश्न:– महावीर भगवाने कहेला अनेकान्तधर्मनुं स्वरूप शुं छे?
उत्तर:– एक ज वस्तुमां पोताना अनंतधर्मोनुं होवापणुं, ने पररूपे
तेनुं असत्पणुं;–आवा अनेकान्तरूप वस्तुस्वरूप छे, एटले प्रत्येक वस्तुने
पोताना स्वरूपथी पूर्णपणुं छे, तेमां बीजा कोईनी अपेक्षा नथी. स्वत: वस्तु
पोते ज पोताना स्वभावधर्मथी द्रव्य–पर्यायरूप छे, नित्य–अनित्यरूप छे,
सत्–असत्रूप छे. अनेकान्त स्वभाववाळी आवी वस्तुमां बीजो कोई कांई
पण करे–ए वात महावीरप्रभुना अनेकान्तमार्गमां रहेती नथी.
महावीरप्रभुए तो अनेकान्तवडे प्रत्येक जीव–अजीव वस्तुनी अन्य समस्त
वस्तुओथी भिन्नता अने पोताना स्वरूपथी परिपूर्णता बतावी छे. आवा
वस्तुस्वरूपने ओळखवुं ते अनेकान्तनो प्रचार छे. आवुं अनेकान्तस्वरूप
ओळखतां परथी भिन्नता जाणीने जीव पोताना स्वरूपनी सन्मुख थाय छे,
–ते अनेकान्तनुं फळ छे, ते महावीरप्रभुनो मार्ग छे. प्रभुना निर्वाणना आ
अढीहजारमा वर्षमां आवा अनेकान्तरूप जैनमार्गनी प्रभावना करवा जेवी
छे; तेमां कोईपण जैनने वांधो होय नहीं.
तथा सम्यग्दर्शनादिनुं साचुं ज्ञान थाय छे ने तेमना संबंधमां विपरीत
मान्यताओ टळी जाय छे. आवुं सम्यक् तत्त्वार्थ श्रद्धान ते जैनधर्मनुं मूळ
छे, अने ते ज महावीर प्रभुना मार्गनी साची ओळखाण छे, तेना वडे ज
प्रचार करवा जेवो छे.
प्रश्न:– महावीरप्रभुना मार्गमां अपरिग्रहवाद केवो छे?
उत्तर:– जीव के अजीव, स्व के पर, प्रत्येक वस्तु पोताना अनंत
गुणस्वरूपथी परिपूर्ण छे, ने बीजा बधाथी सर्वथा जुदी छे. आ रीते
ज्ञान–आनंदमय पोताना परिपूर्ण स्वरूपने जाणवुं, अने तेमां परना के
रागना कोई पण अंशनुं ग्रहण न करवुं एटले परद्रव्यनी के परभावनी
पक्कड न करवी,–तेमां आत्मबुद्धि न करवी, ते ज महावीरप्रभुना मार्गमां
साचुं अपरिग्रहपणुं छे. परना के रागना कोईपण अंशथी पोताने धर्मनो
लाभ थवानुं जे माने तेना भावमां परनी पक्कडरूप परिग्रह छे, प्रभुना
मार्गना अपरिग्रहवादनी तेने खबर नथी. जेनाथी पोताने