Atmadharma magazine - Ank 362
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 6 of 45

background image
: मागशर : रप०० आत्मधर्म : ३ :
लाभ माने तेमां ममत्व रहे ज छे, ने ममत्वबुद्धि ते ज परिग्रह छे.
पोतानो पूर्ण आत्मवैभव जेने न देखाय ते ज बीजा पासेथी कंई लेवानी
बुद्धि करे, ने परमांथी लाभ लेवानी बुद्धि ज परिग्रहनुं मूळ छे.
महावीरभगवाने प्रत्येक आत्मानो संपूर्ण ज्ञानवैभव आत्मामां ज
बताव्यो छे; आवा पोताना पूर्ण आत्मवैभवने देखनार जीव बीजा
पासेथी कांई लेवानी बुद्धि करतो नथी एटले तेने परनी ममतारहित
अपरिग्रहपणुं प्रगटे छे. रागना कोई अंशने पण ते ज्ञानमां पकडतो
नथी, रागना अंशथी ज्ञानने लाभ थवानुं मानतो नथी, एटले तेना
ज्ञानमां रागनो पण परिग्रह नथी. आ रीते ज्ञान पोते ज परना
परिग्रह वगरनुं होवाथी ते अपरिग्रही छे; अने आवुं अपरिग्रहत्व ते ज
भगवाननो मार्ग छे.
आ प्रमाणे भगवानना मार्गमां अहिंसा अनेकांत ने
अपरिग्रहत्व–ए त्रणे एकसाथे छे, सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र पण तेमां
ज समाई जाय छे.
आ रीते अहिंसा, अनेकान्त अने अपरिग्रहवादना प्रचार वडे
महावीर भगवानना मार्गनी प्रभावना करवा जेवी छे; अने ए ज
भगवानना निर्वाणनो पचीससो वर्षनो महोत्सव छे.–आवी ऊजवणीमां
कोईपण जैनने विरोध होई शके नहि. एमां तो बधा जैनो एकमत
थईने कहेशे के–
“जय महावीर”
जगतनी विभूतिओना आश्रये साधक नथी जीवतो; परंतु
जगतनी विभूतिओ साधकनो आश्रय करवा आवे छे. साधक मोटो छे,
जगतनी विभूति कांई मोटी नथी. अहा, चैतन्यनी अद्भुत विभूति
पासे जगतनी विभूति तो साव तूच्छ भूतिसमान छे.
परभावोना मोटा धोधमार पूरनी वच्चे चैतन्यतत्त्व एक ज
अडोल छे; तेनी भावनामां वर्तता मुमुक्षुने संयोगनो कोई प्रवाह खेंची
शकतो नथी. मुमुक्षुनुं जीवन अडगपणे आत्महितना मार्गे ज वर्ते छे,
तेने कोई डगावी शके नहि.