Atmadharma magazine - Ank 362
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : रप०० आत्मधर्म : ३९ :
बंधुओ, आ दशमां जे एकी नंबरनां वाक््यो छे ते आ अंकमां एकी नंबरना
पानामां छे, अने जे बेकी नंबरनां वाक््यो छे ते बेकी नंबरना पानामां छे. जवाब
मोकलवानुं सरनामुं– संपादक–आत्मधर्म, सोनगढ (३६४रप०)
महावीर भगवानना मोक्षगमनना रप००मा वर्ष निमित्ते
योजायेल निबंधयोजनामां भाग ल्यो
(१) महावीर भगवाननी ओळखाणथी आपणने थतो महान लाभ.
(र) महावीर प्रभुना निर्वाणगमनना अढी हजारमा वर्षमां आत्महित माटे आपणुं
कर्तव्य.
उपरोक्त बेमांथी कोईपण विषय उपर चार–पांच पानामां एक निबंध लखीने
ता. १प जान्युआरी सुधीमां मोकली आपो. निबंधमां सौ कोई भाग लई शके छे.
संपादकना निर्णयअनुसार श्रेष्ठ निबंधो माटे योग्य ईनामो आपवामां आवशे. विशेष
माहिती आत्मधर्मना गतांकमां आपेल छे. निबंध मोकलवानुं सरनामुं–
ब्र. हरिलाल जैन, संपादक आत्मधर्म सोनगढ (सौराष्ट्र) ३६४रप०
आत्मधर्म उत्साहथी वांचनाराओने धन्यवाद
गतांकमां दश वाक््यो आत्मधर्ममांथी शोधवानुं पूछेल, तेमां ३०० जेटला
सभ्योए खूब उत्साहथी भाग लीधो छे. पूछेला दश वाक््यो अनुक्रमे पानुं–४, र४, ४,
र, प, ८, ११, १, र अने र–ए पानामां छे. भाग लेनार सौने धन्यवाद साथे
ईनामरूपे “शूरवीरसाधक” नामनुं पुस्तक मोकली देवामां आव्युं छे. एवी ज रीते
उत्साहथी आत्मधर्म द्वारा रजु थती बधी योजनाओमां सौ भाग लेशो.
चालो विचारीए–
नीचेना प्रश्नोना जवाब विचारी राखशो, अने आवता अंकमां वांचशो–
(१) आपणा सौराष्ट्र–गुजरात राज्यमां चार सिद्धक्षेत्र–तीर्थधाम आवेला छे–ते
क्या–क्या?
(र) आपणे एक जीव एवा शोधी काढवा छे के जेओ जराय दुःखी न होय;–जे
मनुष्यगतिमां न होय, देवगतिमां पण न होय;– तो ते क््यां हशे?
(३) आपणे नमस्कार मंत्र बोलीने रोज जे पंचपरमेष्ठीने नमस्कार करीए छीए,
तेमांथी पूरा ज्ञानी केटला? ने अधूरा ज्ञानी केटला?
(४) ते पांच परमेष्ठीओ कई कई गतिमां होय?