સમયસારાદિ પરમાગમોમાં ભર્યા છે. અને તેથી જ આપણા જૈન પરમાગમોની મહાનતા
તથા પૂજ્યતા છે. જિનાગમોમાં જે ગંભીર ચૈતન્યભાવો ભર્યા છે તે બીજા કોઈ
અમૂલ્ય નિધાન મળશે. મુમુક્ષુની નિરંતર ભાવના હોય છે કે–
દોષવાદમેં મૌન રહું ફિર પુન્યપુરુષ–ગુણ નિશદિન ગાવું.
ગુણને પામતો નથી.
है, वह अनुकूल होती है या प्रतिकूल, यह लक्ष्यमें रखना जरुरी नहीं है। यदि
उन्हें किसी प्रकारका भय हो भी तो सबसे बडा भय आगमका होना चाहिए।
विद्वानोंका प्रमुख कार्य जिनागमकी सेवा है और वह तभी संभव है जब वे
समाजके भयसे मुक्त होकर सिद्धांतके रहस्यको उसके सामने रख सकें। कार्य
बडा है। इस कालमें इसका उनके ऊपर उत्तरदायित्व है, इसलिय उन्हें यह कार्य
सब प्रकारकी मोहममताको छोडकर करना ही चाहिए। समाजका संघारण करना
उनका मुख्य कार्य नहीं है। यदि वे दोनों प्रकारके कार्योंका यथास्थान निर्वाह कर
सकें तो उत्तम है। पर समाजके संघारणके लिये आगमको गौण करना उत्तम नहीं
है। हमें भरोसा हे कि विद्वान इस निवेदनको अपने हृदयमें स्थान देंगे और ऐसा
मार्ग स्वीकार करेंगे जिससे उनके सद्प्रयत्नस्वरूप आगमका रहस्य विशदताके
साथ प्रकाशमें आवे।।”