: पोष : रप०० आत्मधर्म : २५ :
सिंह करतांय शूरवीर मुमुक्षु –
वीर सर्वदमन शूरवीर मुमुक्षु
सिंहणनुं मोढुं फाडीने तेम कर्मरूपी सिंहनुं मोढुं फाडीने
तेना दांत गणे छे... निज आत्माने देखे छे.
‘सर्वदमन’ नी वीरतानी एक वात प्रसिद्ध छे के, ते नानो हतो त्यारे एकवार
सिंहना बच्चांने रमतां–रमतां हाथमां तेड्युं; सिंहण पण सामे ज ऊभी हती, ने आंख
फाडीने जोई रही हती. पण आ सर्वदमनने कोनी बीक? एणे तो निर्भयपणे सिंहणनुं
मोढुं झालीने कह्युं के– ‘उघाड तारुं मोढुं; मारे तारा दांत गणवा छे! ’ जुओ, केटली हिंमत!
तेम अहीं ‘सर्वदमन’ एवो मुमुक्षु आत्मा शूरवीर थईने मोक्षने साधवा जाग्यो,
ते सर्वे कर्मरूपी सिंहनुं दमन करतां चैतन्यनी वीरताथी कहे छे के–खूली जा कर्म; मारे
मारो परमात्मा देखवो छे! मारा परमात्मामां तारो अभाव छे. चैतन्यमां वळी कर्म
केवा? आम, कर्मरूपी सिंहनुं मोढुं फाडीने पोते पोताना परमात्माने देखी ल्ये छे.
–आत्माने साधवा नीकळ्या ए ते कांई कर्मथी डरता हशे? ए तो पोतानी
प्रभुत्वशक्तिवडे कर्मने तोडीने परमात्मा थाय छे.
(प्रभुत्वशक्तिना प्रवचनमांथी)