Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : महा : २५००
जो तु शिवपुरीपंथनो पथिक थवा चाहतो हो
–तो शुं करवुं? ते आचार्यदेव बतावे छे.
हे पथिक शिवपुरीपंथना! ...तुं प्रथम जाणजे भावने;
छे मार्ग साध्य प्रयत्नथी; नहि भावविरहित लिंगथी.
(भावप्राभृत गाथा–६)

“हे शिवपुरीपंथना पथिक! ” वीतरागभाव वगरना एकला बाह्य दिगंबर
लिंगथी तने शुं लाभ छे? शुद्धभाव वगरना लिंगथी कांई मोक्षमार्ग सधातो नथी;
जिनवरदेवे कहेलो मोक्षमार्ग तो सम्यक्त्वादि शुद्धभावरूप प्रयत्न वडे ज साध्य छे. माटे
प्रथम तुं भावने जाण.
अहा, जुओ तो खरा! आचार्यदेवे भव्यजीवने केवुं मधुरुं संबोधन कर्युं छे!!
‘शिवपुरीपंथना पथिक! ’ एम कहीने बोलाव्यो छे. अरे भाई! तुं तो शिवपुरीना
मार्गे चालनारो छो ने! तो शिवपुरीनो मार्ग शुद्धभाव वडे ज साधी शकाय छे; माटे
प्रथम तुं शुद्धभावने जाणीने तेनो प्रयत्न कर. कांई शुभराग वडे के मात्र बहारना
दिगंबर मुनिभेष वडे मोक्षमार्ग सधातो नथी. तुं अनादिकाळथी शुद्धभाव वगर ज
संसारमां रखडयो. शुभाशुभ भावो तो तें अनंतकाळमां अनंतवार कर्या छे, द्रव्यलिंग
पण अनंतवार धार्या छे–पण शिवपुरीनो मार्ग हजीसुधी तारा हाथमां न आव्यो; माटे
हवे तुं समज के तेनाथी जुदी जातनो, शुद्धभावरूप मोक्षमार्ग छे; एम जाणीने एवा
शुद्धभावनो उद्यम तुं कर. आत्मानुं स्वरूप जाणीने स्वसन्मुख परिणति ते शुद्धभाव छे,
ते ज शिवपुरिनो उद्यम छे. आवा मार्गे जिनेश्वरदेवो मुक्ति पाम्या छे, ने ते ज मार्ग
जगतना भव्य जीवोने उपदेश्यो छे.–
अर्हंत सौ कर्मोतणो करी नाश ए ज विधि वडे,
उपदेश पण एम ज करी, निवृत्त थया; नमुं तेमने.
(प्रवचनसार–८२)