Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: महा : रप०० आत्मधर्म : २१ :
तीर्थ छे, ते आत्मा पोते शुद्धभाववडे संसारने तरी रह्यो छे एवा तीर्थस्वरूप जीवो ज्यां
विचर्या ते भूमिने पण उपचारथी तीर्थ कहेवाय छे. अंदरना भावतीर्थना स्मरण माटे ते
तीर्थनी यात्रानो भाव धर्मीनेय आवे छे.
अहो, जैनधर्मना सेवन वडे सर्व जीवोनो उदय थाय छे तेथी जिनेंद्र भगवानना
शासनने ‘सर्वोदयतीर्थ’ कहेवाय छे. श्री समंतभद्रस्वामीए भगवानना शासनने
सर्वोदय तीर्थ कहीने स्तुति करी छे. रत्नत्रयधारक मुनिराज ते हालता चालता जीवंत
तीर्थ छे. आचार्यदेव कहे छे के अहो भव्य जीवो! सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपी पवित्र
जळथी भरेलुं आ रत्नत्रय तीर्थ–(त्रिवेणीसंगमनी जेम रत्नत्रयनो जेमां संगम छे)
तेमां स्नान करो.
* * * * *
× नानी पण अत्यंत जरूरी वात ×
गुरुदेव प्रवचनमां अवारनवार कहे छे के सम्यग्दर्शन पहेलांं
पण, साधारण जैननेय रात्रे खावानुं होय नहीं. रात्रे खोराकमां त्रसजीव
होय छे, रात्रे खावुं ते तो सीधेसीधो मरेला त्रस जीवने खावा जेवुं छे.
साधारण जैनने पण रात्रिभोजन शोभे नहीं. (इंडा के मध ते मांस
जेवा ज अभक्ष छे. मुमुक्षुने दवामां पण ते होय नहीं.) ए ज रीते
पीवानुं पाणी योग्य रीते गळ्‌या वगर जैन वापरे नहि. साधारण स्थूळ
जैनना संस्कार होय ते पण रात्रे भोजन के अणगळ पाणीनो उपयोग
करे नहीं.
जैननी भोजनसंस्थाओमां के लग्नादि प्रसंगे पण रात्रे के
सूर्योदय पहेलांं खोराक रांधवानुं सदंतर बंध थवुं जरूरी छे. कंदमूळनुं
भक्षण के तमाकु जेवी वस्तुनुं व्यसन पण मुमुक्षुने शोभे नहीं. आशा छे
के दरेक जैन अने दरेक कार्यकरो आ वातनुं जरूर पालन करशे. मुंबई हो
के सौराष्ट्र, भारतमां हो के अमेरिका जेवा परदेशमां,–पण जैन मात्रे
आटली वातनुं पालन करवुं ते पोताना हित माटे उपयोगी छे, तेमज
जैनसमाजनी शोभा माटे सदाचार अत्यंत जरूरी छे
जय महावीर
(महावीर भगवानना मोक्षगमननुं अढीहजारमुं वर्ष छे.)