Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: महा : रप०० आत्मधर्म : ३५ :
* परमागम–मंदिरनो महोत्सव केवो अद्भुत हशे! तेनी थोडीक झांखी अहीं
आपी छे. पूरा उत्सवनो आंखे देख्यो आनंदकारी अहेवाल हवे पछीना अंकमां
आप वांचशो. पण ते माटे आपे आपनी आतुरताने थोडीक रोकवी पडशे. केमके
ते अंक दश दिवस मोडो (एटले के ता. २० मी मार्चे) रवाना थशे. अंक संबंधी
घणी तैयारीओ एकला हाथे करवानी होवाथी एटलो विलंब थशे. (सं०)
* हालमां त्रणमास (फागण चैत्र ने वैशाख) सुधीमां आत्मधर्ममां सामान्यपणे
वैराग्य–समाचार छापवानुं बंध राखवामां आवशे,–तेथी सर्वे जिज्ञासुओने
तेवा समाचार न मोकलवा सूचना छे.
* आ महान उत्सवना रोजेरोजना समाचारो तथा प्रवचननी प्रसादी हिंदी तेम ज
गुजरातीमां एक पत्रिकारूपे सोनगढमां दररोज प्रगट थशे. बहारगामना जेओ
ताजा समाचार मेळववा मांगता होय तेमणे रूा. २/– तथा पोताना सरनामानी
पांच नकल मोकलवाथी पत्रिका पोस्ट द्वारा मोकलवानी व्यवस्था थशे.
सरनामुं: ब्र. हरिलाल जैन सोनगढ ()
* आप तो आत्मधर्मना ग्राहक छो ज. पण जिनशासननी परम प्रसादीनो स्वाद
आपना स्नेही–मित्रजनोने शुं आप नहीं चखाडो? एमने ए प्रसादी तमारे
आपवी ज जोईए. अने ते माटे तेमने आत्मधर्म पहोंचाडवुं जोईए. लवाजम
मात्र चार रूपिया छे. उत्सव वखते आप जरूर आपना स्नेहीजनोनुं लवाजम
भरी देशो.
–आत्मधर्म कार्यालय सोनगढ ()
कल्याणकारी कल्याणक
सौ साधर्मीओ आनंदथी हळमळीने आ उत्सव एवी रीते उजवशुं के सौने
आनंद थाय. आ तो ‘कल्याणक’ प्रसंग छे, सौनुं कल्याण थाय, ने कोईने कोईप्रकारे
मनदुःख न थाय, होय तोपण दूर थई जाय–एवो आ उत्सव छे. प्रभुना कल्याणकमां
जगतना बधा जीवोने सुख थाय छे तेम आ कल्याणक पण सौने सुखदायी बनी रहेशे.
अहा, ज्यारे आ दुनियामां तीर्थंकरना मार्गनुं नाम पण मोंघुं थतुं जाय छे त्यारे आपणे
तो केवा भाग्यशाळी छीए के विद्यमान, भूत ने भावि त्रणेकाळना तीर्थंकरोनो सुयोग
आपणने मळ्‌यो छे! तेनी खरी किंमत ए छे के आपणे आपणुं आत्मकल्याण करीने
तीर्थंकरोना मार्गमां दाखल थई जईए. ए ज आपणो उत्सव!