जाय छे.
हाजर मालनी वात छे, पर्यायमां अनंत गुणनी शुद्धता विद्यमान छे तेनी वात
छे. धर्मीनी पर्यायमां अनंतगुणनी शुद्धतानी विजय ध्वजा फरकी रही छे; ते
कोईथी नमे नहीं. आवी साधकदशा ते धर्मनी जुवानीनो अवसर छे...
जुवानीनुं फाटफाट वीर्य कोईथी दबाया वगर मुक्तिने साध्ये ज छूटको करे.
श्रद्धाना परिणमनमां रागपरिणमननो अभाव छे. एवा सम्यक्परिणमन वडे
ज सिद्धनी साची ओळखाण थई छे. पोतामां रागथी भिन्न सम्यक् परिणमन
वगर सिद्धनी पण साची ओळखाण थती नथी.
आचार्यदेव पोते समयसारमां छेल्ले कहे छे के अहो! आत्माना स्वभावनो
महिमा...अद्भुतथी पण अद्भुत छे! अने ते स्वभाव अमारी साधक पर्यायमां
जयवंत वर्ते छे.
थयुं.–ते परिणमनमां शुं थयुं?–के
अने जे रागादि ‘हता ते नहोता’ थई गया.
जे रागादि दोष हता ते न हता थई गया.