Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : महा : २५००
* अहा, ज्यां चैतन्यसत्ता विद्यमान छे त्यां शुं नथी? सर्वे गुणोनी शुद्धता त्यां
विद्यमान छे, ते भावरूप छे, ने तेमां रागादिनो अभाव छे. आवुं भावपणुं
ने अभावपणुं–धर्मीना ज्ञानपरिणमनमां भेगुं ज वर्ते छे. तेने हवे रागनो
सर्वथा अभाव थईने केवळज्ञाननो सद्भाव खीली जशे.
* अहो, अनंतगुणोनी शुद्धतानो जेमां भाव छे–एवी साधकदशा छे. साधकने
पोतानी परिणतिमां अनंतगुणनो निर्मळ भाव प्रगट वेदाय छे. जेने अनंत–
गुणनी शुद्धता पोतानी पर्यायमां न देखाय तेणे चैतन्यसत्तानो स्वीकार ज
कर्यो नथी. चैतन्यसत्तानी विद्यमानतामां तो अनंतगुणनी शुद्धता सत्पणे
‘भाव’ रूप होय. चैतन्यदरियामां अनंतगुणनी शुद्धताना तरंग ऊछळे छे.
* चैतन्यना द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे चैतन्यभावरूप छे, सूक्ष्म छे; ने रागादि
भावो तो स्थूळ छे, चैतन्यभावथी जुदी जातना छे. चैतन्यभावने ज्यां राग
साथेय संबंध नथी त्यां पर साथे संबंध केवो?
* शांतिना समुद्र एवा चैतन्यतत्त्वने ज्यां स्वीकार्युं त्यां धर्मात्माने सदाय
शांतिना हीलोळा ज छे...देह छूटे तोपण शांतिना हिलोळे आत्मा झूले छे.
सोनाना मंदिर उपर हीरानो कळश
* अहा! आवा आत्मतत्त्वना अनुभवसहित तेनुं घोलन करतां करतां
अमृतचंद्रस्वामीए आ अद्भुत ‘आत्मख्याति’ रचीने शुद्धात्माने केवो
मलाव्यो छे!! टीकानी रचना काळे पण अंदर परिणतिनी शुद्धता थती जाय
छे. चैतन्यना अलौकिक भावो आचार्यदेवे आ टीकामां खोल्या छे. ने तेमांय
आ ४७ शक्तिथी आत्मानुं वर्णन करीने तो सोनाना मंदिर उपर हीरानो
कळश चडावी दीधो छे. एना भाव समजे तेने तेना महिमानी खबर पडे.
(ए बधुं आपणा परमागम–मंदिरमां कोतराई गयुं छे. ने तेना भावोने
आत्माना भावश्रुतमां कोतरतां अतीन्द्रिय आनंद झरे छे. ते परमागमनी–
प्रतिष्ठानो अपूर्व महोत्सव छे.)
“अहो, जिनवाणीनी गंभीरतानी शी वात! ”
–एम वीतरागसंतोनो ने जिनवाणीनो अपार महिमा गुरुदेव