विद्यमान छे, ते भावरूप छे, ने तेमां रागादिनो अभाव छे. आवुं भावपणुं
ने अभावपणुं–धर्मीना ज्ञानपरिणमनमां भेगुं ज वर्ते छे. तेने हवे रागनो
सर्वथा अभाव थईने केवळज्ञाननो सद्भाव खीली जशे.
पोतानी परिणतिमां अनंतगुणनो निर्मळ भाव प्रगट वेदाय छे. जेने अनंत–
गुणनी शुद्धता पोतानी पर्यायमां न देखाय तेणे चैतन्यसत्तानो स्वीकार ज
कर्यो नथी. चैतन्यसत्तानी विद्यमानतामां तो अनंतगुणनी शुद्धता सत्पणे
‘भाव’ रूप होय. चैतन्यदरियामां अनंतगुणनी शुद्धताना तरंग ऊछळे छे.
साथेय संबंध नथी त्यां पर साथे संबंध केवो?
मलाव्यो छे!! टीकानी रचना काळे पण अंदर परिणतिनी शुद्धता थती जाय
छे. चैतन्यना अलौकिक भावो आचार्यदेवे आ टीकामां खोल्या छे. ने तेमांय
आ ४७ शक्तिथी आत्मानुं वर्णन करीने तो सोनाना मंदिर उपर हीरानो
कळश चडावी दीधो छे. एना भाव समजे तेने तेना महिमानी खबर पडे.
(ए बधुं आपणा परमागम–मंदिरमां कोतराई गयुं छे. ने तेना भावोने
आत्माना भावश्रुतमां कोतरतां अतीन्द्रिय आनंद झरे छे. ते परमागमनी–
प्रतिष्ठानो अपूर्व महोत्सव छे.)