: ४४ : आत्मधर्म : महा : २५००
बे वारता
* वज्रबाहुनो वैराग्य *
राजकुमार वज्रबाहु मनोदयाराणी साथे हाथी उपर बेसीने नगरी तरफ जई रह्या छे,
साथे तेमना साळा उदयसुन्दर अने बीजा २६ राजपुत्रो छे. वनमांथी पसार थतां थतां
एकाएक वज्रबाहुनी नजर थंभी गई...आश्चर्यथी एक झाड तरफ एकीटसे जोई रह्या.
* उदयसुन्दरे कह्युं: कुमारजी! कया देख रहे हो?
* कुमारे अंगुलिनिर्देश करीने कह्युं: देखो झाड नीचे वह मुनि बिराजमान है...अहा!
कैसी अद्भुत है उनकी दशा! ! धन्य है उनका जीवन!!
* उदयसुन्दरे कह्युं: कुमारजी! क््यांक आप पण एमना जेवा न थई जता!
* वज्रकुमारे कह्युं: वाह! भाई, हुं ए ज भावना भावतो हतो..तमे मारा मननी
वात जाणी लीधी; हवे तमारा मनमां शुं छे ते कहो!
* “मारी पण ए ज भावना छे”–उदय सुन्दरे कह्युं. अने बन्ने राजकुमारो
मुनिराजना चरणसमीप चाल्या...साथे छव्वीसेय राजपुत्रो पण चाल्या...मुनिराज पासे दीक्षा
लईने ए बधाय मुनि थई गया...राणी मनोदया वगेरे पण संसारथी विरक्त थई अर्जिका
थया.
धन्य ए संसारथी विरक्त सन्तोने.
बंधुओ वनमां पहेलेथी आत्मज्ञानना संस्कार लीधा होय, तो जीवना अंतरमां
वैराग्यनुं झरणुं सहेजे वहेतुं होय छे; ने आवी धन्यपळे संसार छोडीने मोक्षने साधतां वार
लागती नथी. माटे, राजपुत्रोनी जेम तमेय जीवनमां पहेलेथी ज ज्ञान अने वैराग्यना
संस्कार राखजो.
वाघणनो वैराग्य
सुकोशल राजकुमारनो जन्म थतां ज तेने राजतिलक करीने राजा कीर्तिधरे दीक्षा लई
लीधी. एमनी दीक्षाथी आघात पामेली राणी सहदेवीने मुनिवरो प्रत्ये अणगमो थई गयो...
ने एकनो एक कुमार पण मुनिने देखीने क्यांक मुनि न थई जाय–एवी बीकथी तेणे एवो
दुष्ट हुकम कर्यो के कोई मुनिने नगरीमां आववा न देवा.
एकवार राजमहेलनी अगाशीमां ऊभो ऊभो कुमार जुए छे के नगरना दरवाजे
कोई तेजस्वी महात्मा आवी रह्या छे, पण दरवान तेमने अटकावे छे. वैरागी कुमारे पूछयुं
–माता! ए तेजस्वी महात्मा कोण छे? ने दरवान तेमने केम रोकी रह्यो छे?
कुंवरनो प्रश्न सांभळतां ज माताना मनमां ध्रासको पड्यो. तेणे कह्युं: ‘बेटा,