परमागमना मंडपमां...तमे...आवजो....पधारजो... तमे....
विदेहीनाथ पधारजो वळी साधकसंतो आवजो,
अढीद्वीपनां सौ साधर्मी...तमे आवजो...पधारजो... तमे... श्रीवीर.
ज्यां समकितनां तो तोरण छे, सुज्ञान–मंगलद्वार छे,
ज्यां चारित्र–शिखर शोभे छे...तमे आवजो...पधारजो... तमे... श्रीवीर.
पच्चीसो वरसे आवे छे श्री वीरप्रभु पधारे छे,
दर्शन आनंदकार छे...तमे आवजो...पधारजो... तमे... श्रीवीर.
श्री गुरु कहान बोलावे छे सौ भक्तो स्वागत आपे छे,
सुवर्णे वाजां वागे छे....तमे आवजो...पधारजो... तमे... श्रीवीर.
ज्यां आनंद अपरंपरा छे, ज्यां चैतन्यनां रसपान छे,
ज्यां रत्नत्रयनां द्वार छे...तमे आवजो...पधारजो... तमे... श्रीवीर.
ज्यां वीरप्रभुनां वहेण छे, ज्यां कुंदप्रभुनां कहेण छे,
ज्यां खुल्ला मुक्ति मारग छे...तमे आवजो...पधारजो... तमे.... श्रीवीर.
आ उत्सवमां जो आवशो ने वीरनो मारग जाणशो,
तो भवना छेडा पामशो, तमे आवजो पधारजो... तमे... श्रीवीर.