करता वृद्धि धर्मनी ने पोते धर्म स्वरूप,
सुवर्णमां पधारीया, छे महोत्सव आनंदरूप.
त्रण शिखर एक मंदिरे, ने कळशा छे ओगणीश,
बिराजे भगवंत जे...तेने नमावुं शीष.
()
काले काले च सम्यग्वर्षतु मघवा व्याधयो यान्तु नाशम्;
दुर्भिक्षं–चौरमारी–क्षणमपि जगतां मास्मभून्जीवलोके,
जैनेन्द्रं धर्मचक्र प्रभवतु सततं सर्वसौख्यप्रदायि.
अहो, जगतमां सर्व जीवोने सुख देनारुं श्री जिनेन्द्रभगवाननुं धर्मचक्र,
जगतमां सतत प्रवर्तो...श्री जैनशासनना प्रतापे सर्वे प्रजाजनोनुं कल्याण
थाओ; राज्यनुं पालन करनारा धार्मिक अने बळवान हो; देशमां सुकाळ हो
ने व्याधिनो नाश पामो, दुर्भिक्ष–चोरी–मरकी वगेरे कोई उपद्रव आ
जगतमां एकक्षण पण न हो. अहो, आवुं कल्याणकारी जैनशासन जयवंत
वर्तो. जिनेन्द्रदेवना पंचकल्याणक जगतना जीवोनुं कल्याण करो.
वर्द्धमान भगवाननी सवापांच फूटनी भव्य प्रतिमा ता. १६ मीए तैयार थई जशे, ने
लगभग ता. १९मीए सोनगढ पधारवानो संभव छे.