Atmadharma magazine - Ank 364
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ४६ : आत्मधर्म : महा : २५००
चालो बाळको आनंद करीए–
सोनगढमां आनंदनो मजानो अवसर नजीक आवी रह्यो छे. बाळको, तमे पण
उत्सवमां आवी शकशो तो आनंदनी वात छे. त्यार पहेलांंय तमने थोडोक आनंद
करावीए तमने उखाणा शोधवा तो बहु गमे, एटले अहीं केटलाक उखाणा आप्या
छे, तेनो जवाब शोधतां तमने आनंद थशे ने धार्मिक ज्ञान पण मळशे. (सं.)
(१)
अक्षर साडापांच छे, प्रसिद्ध भारतमांय,
त्रीजे–बीजे ईष्टदेव, एक–बेथी संभळाय,
छेल्लो–बीजो जळमां वसे, भारतना छे सन्त,
एनुं कह्युं ओळखशो तो लेशो भवनो अन्त.
(२)
पहेल–बीजे हेम छे, चार अक्षरनुं धाम;
त्रीजो–चोथो दूर्ग छे, कहोजी कयुं ते गाम?
(३)
प्रगटी वाणी वीरनी, पंचाक्षरी ए नाम;
गौतम ज्यां गणधर थया, कहोजी कयुं ए धाम?
(४)
घातीकर्मनो क्षय करी प्रगट्युं ज्ञान अनंत;
देह छतां परमातमा....कहोजी क््या भगवंत?
(५)
उपयोग लक्षण जेहनुं, जाणे सौने जेह;
पण ईन्द्रियथी जणाय ना, ओळखी काढो तेह.
(६)
सत्संगना सेवन थकी जेनी प्राप्ति थाय, एनी
प्राप्ति थया पछी जरूर मुक्ति थाय. एनी
प्राप्ति थतां अहो! आनंद उरमां न माय. करी
ल्ये प्राप्ति एहनी ते धन्य धन्य जगमांय.
(७)
जीवने जीव जाण्यो नहि, गण्युं शरीरने जीव;
जेथी बहु दुःखी थयो, कहो केवी ए टेव?
दूश्मन छठ्ठा उत्तरनो, जगतमां ए दुष्ट, एने
जो हणी नांखशो तो थशो अहिंसक पुष्ट.
(८)
जो आत्माने जाणशुं, थईशुं एमां लीन;
एनुं फळ शुं पामशुं? शोधी लेजो प्रवीण.
(९)
आत्माने नहि जाणशो, करशो कदी पुण्यराग;
एनुं फळ शुं पामशो? शोचो जरा दिमाग.
(१०)
सौथी मोटो देव छे, विचरे अवनिमांय,
भरतमां आवे नहि छतां कर्यो परम उपकार.
भक्त एना भरते वसे, सांभळी एनी वाण.
संत हृदय बिराजता कहोजी क्या भगवान?
(११)
प्रथम बेमां बावन वसे, अक्षर जेना पांच;
आपे सम्यक् ज्ञानने, जो तुं भावथी वांच.
कुंदकुंददेवनुं हृदय छे, ने वीरप्रभुनी वाण,
कहानगुरुने वाहला ने भारतना छे भाण.
जेनो उत्सव अतिघणो, मंदिर पण छे महान,
वर्द्धमान जिन शोभता...कहोजी एनुं नाम!