Atmadharma magazine - Ank 365
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २५०० : आत्मधर्म : ११:
अनुभव केम थाय? ते समझना चाहते हैं!
गुरुदेव तेना उत्तरमां कहे छे के आत्मा उपयोगस्वरूप छे, तेना उपयोगने
क्रोधादिथी भिन्नता छे–आवी ओळखाण अने भेदज्ञान करवुं ते ज पहेलांं करवानुं छे.
तेमां ज अहिंसा, अनेकान्त अने अपरिग्रह समाय छे. आ ज जन्म–मरण मटाडवानुं
महान औषध छे.
आत्मभ्रांति सम रोग नहि....
सद्गुरु वैद्य सुजाण;
गुरुआज्ञा सम पथ्य नहि,
औषध विचार ध्यान.
भाई, आ वात समज्यां वगर संसारनां जन्म–मरणनां दुःख मटे तेम नथी.
अघरूं लागे के सहेलुं लागे–पण आ समजये छूटको छे, आनंदस्वरूप आत्मानी वात
दुर्लभ छे, पण अशक््य नथी. संतोए जे रीते समजाव्युं छे ते रीते समजे तो ते सुलभ
छे. भेदज्ञाननी अपूर्व वात आचार्यदेवे आ संवर–अधिकारमां समजावी छे.
उपयोगमां उपयोग छे, एटले के ज्ञानपरिणतिरूप जे उपयोग ते आत्मानुं
स्वरूप छे, क्रोधादिमां उपयोग नथी, एटले ते क्रोधादि आत्मानुं स्वरूप नथी.
बंनेनी जात सर्वथा जुदी छे. बंनेना वेदननो स्वाद तद्न जुदो छे,–उपयोगनां
स्वादमां शांति छे, ने रागादिना स्वादमां अशांति छे.–आवुं भेदज्ञान करीने तेना
संस्कार एवा द्रढ पाडवा जोईए के स्वप्नमां पण तेना भणकार आवे के हुं
ज्ञानानंदस्वरूप परमात्मा छुं.
पचीस हजार जेटला श्रोताजनोनी सभाने चैतन्यरसना झुले गुरुदेव झुलावी
रह्यां छे; श्रोताजनो स्तब्ध थईने गुरुमुखे झरतो जिनवाणीनो रस पी रह्या छे. वाह!
केवो मधुर चैतन्यरस भर्यो छे आ जिनवाणीमां! आवा जिनवाणी माताजी आजे
परमागम मंदिरमां पधार्या छे, ने भक्तोना हैया हर्षविभोर बनी रह्यां छे. गुरुदेवना
प्रवचननो उमळको आज कोई अनेरा भावथी उल्लसी रह्यो छे. गुरुदेव कहे छे के:
भगवान महावीरना उपदेशमां आ आव्युं हतुं, ने सीमंधर परमात्मा पण आवो ज
उपदेश अत्यारे दई रह्यां छे के आत्माना उपयोगमां ज्ञानक्रिया ते अहिंसा छे, ने
रागक्रिया ते हिंसा छे, –आवो उपदेश ते ज वीतरागतानो उपदेश छे. ने वीतरागतानो
उपदेश ते ज ईष्टउपदेश छे.
‘राग आग दहे सदा तातें समामृत सेविये’ भेदज्ञान ते समामृत छे, राग–