तेमां ज अहिंसा, अनेकान्त अने अपरिग्रह समाय छे. आ ज जन्म–मरण मटाडवानुं
महान औषध छे.
सद्गुरु वैद्य सुजाण;
गुरुआज्ञा सम पथ्य नहि,
औषध विचार ध्यान.
दुर्लभ छे, पण अशक््य नथी. संतोए जे रीते समजाव्युं छे ते रीते समजे तो ते सुलभ
छे. भेदज्ञाननी अपूर्व वात आचार्यदेवे आ संवर–अधिकारमां समजावी छे.
बंनेनी जात सर्वथा जुदी छे. बंनेना वेदननो स्वाद तद्न जुदो छे,–उपयोगनां
स्वादमां शांति छे, ने रागादिना स्वादमां अशांति छे.–आवुं भेदज्ञान करीने तेना
संस्कार एवा द्रढ पाडवा जोईए के स्वप्नमां पण तेना भणकार आवे के हुं
ज्ञानानंदस्वरूप परमात्मा छुं.
केवो मधुर चैतन्यरस भर्यो छे आ जिनवाणीमां! आवा जिनवाणी माताजी आजे
परमागम मंदिरमां पधार्या छे, ने भक्तोना हैया हर्षविभोर बनी रह्यां छे. गुरुदेवना
प्रवचननो उमळको आज कोई अनेरा भावथी उल्लसी रह्यो छे. गुरुदेव कहे छे के:
भगवान महावीरना उपदेशमां आ आव्युं हतुं, ने सीमंधर परमात्मा पण आवो ज
उपदेश अत्यारे दई रह्यां छे के आत्माना उपयोगमां ज्ञानक्रिया ते अहिंसा छे, ने
रागक्रिया ते हिंसा छे, –आवो उपदेश ते ज वीतरागतानो उपदेश छे. ने वीतरागतानो
उपदेश ते ज ईष्टउपदेश छे.