:१०: आत्मधर्म फागण : २५०० :
एवा देव–गुरुनी नीकटतामां आपणे पण एवी ठंडक अनुभवीए छीए. अहो,
महान भाग्य छे आपणा के जगतमां श्रेष्ठ एवा जिन भगवान आपणने मळ्या, ने ए
भगवाननो मार्ग श्री गुरुदेवे आपणा माटे खुल्लो कर्यो. आवो रे आवो. ! जगतना
बधा जीवोने माटे आ मंगलमार्ग खुल्लो छे.
आजे भगवाननी प्रतिष्ठानो, ने परमागमनी प्रतिष्ठानो मंगल दिवस छे;
जेनाथी जन्म–मरणनो अंत आवे एवी वात परमागमोमां कुंदकुंदाचार्यदेवे प्रसिद्ध
करी छे.
भगवाने अनेकान्त, अहिंसा अने अपरिग्रहनो उपदेश आप्यो छे, पण तेनुं
साचुं स्वरूप शुं छे? ते अहीं आ ज्ञानक्रियामां आचार्यदेवे अलौकिक रीते समजाव्युं छे.
भगवाने विपुलाचल पर्वत उपर राजीगृही नगरीमां दिव्य–ध्वनिमां जे उपदेश
आप्यो ने गौतम गणधरे ते झीलीने बार अंगमां सूत्ररूपे गूंथ्यो, तेना ‘ज्ञानप्रवाद’
मांथी आवेलो ज्ञानप्रवाह कुंदकुंदाचार्यदेवे आ समयसार वगेरे परमागमोमां संघर्यो छे.
तेमां वीतरागी संतोए वीतरागतानो उपदेश आप्यो छे. चैतन्यनो आनंद जगतना
जीवो केम पामे, सर्वे जीवो आत्माना आनंदना रसिक थाय ने धर्म पामे–एवी भावना
तीर्थंकरोए पूर्वभवमां भावी हती, तेनां फळमां जे दिव्यवाणी नीकळी ते पण जगतनां
जीवोने आत्माना आनंदनुं निमित्त छे. महावीर भगवाने अर्थरूपे जे उपदेश दिव्य–
ध्वनिमां दीधो, ते ज उपदेश वीतरागी संतोए सूत्ररूपे गूंथ्यो छे, ते सूत्रोनी स्थापनानो
आ महोत्सव छे.
ते परमागम सूत्रोमां भगवाने शुं कह्युं छे? भगवाने एम कह्युं छे के आत्मा
उपयोगस्वरूप छे; उपयोगने अने क्रोधने भिन्नता छे: उपयोगनी क्रियामां राग नथी.
राग वगरनी जे शुद्धोपयोग दशा ते ज भगवाने कहेलो परम अहिंसा धर्म छे. अने
रागादिभावोनी उत्पत्ति ते हिंसा छे.
शुद्धोपयोगरूप जे परम अहिंसा छे ते वीतरागभाव छे, तेथी तेमां
अपरिग्रहपणुं छे. आवी वीतराग शुद्धोपयोगदशा ते ज जीवनुं जीवन छे, –आवुं जीवन
भगवान जीवे छे, अने बीजाने पण एवुं जीवन जीववानो उपदेश आप्यो छे.
शुद्धोपयोगमां चैतन्यना आनंद–शांति–श्रद्धा वगेरे अनंत गुणोनुं वेदन एक साथे छे.
तेमां रागनो अभाव छे, ते ज अनेकान्त धर्म छे.
श्री शांतिप्रसादजी शाह पूछे छे के पहेलांं शुं करवुं ते वात कहो. आत्मानो