Atmadharma magazine - Ank 365
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २५०० : आत्मधर्म : ९:
परमागमां श्रीमहावीरप्रभुए आपेल ईष्टउपदेश
देवगुरुधर्मनी छायामां आनंदथी उजवायेलो शांतिनो महान उत्सव.
मोक्षनो मंगल मार्ग बधां जीवोने माटे खुल्लो छे.
(फागण सुद ३ नुं मंगलप्रवचन)
पचीस हजार जेटला श्रोताजनोनी सभाने
चैतन्यरसना झुले गुरुदेव झुलावी रह्या छे; श्रोताजनो
स्तब्ध थईने गुरुमुखे झरतो जिनवाणीनो रस पी रह्या छे.
वाह! केवो मधुर चैतन्यरस भर्यो छे आ जिनवाणीमां!
आवा जिनवाणी माताजी आजे परमागम मंदिरमां पधार्या
छे, ने भक्तोना हैया हर्षविभोर बनी रह्या छे. गुरुदेवना
प्रवचननो उमळको आज कोई अनेरा भावथी उल्लसी रह्यो
छे. गुरुदेव कहे छे के: भगवान महावीरनां उपदेशमां आ
आव्युं हतुं, ने सीमंधर परमात्मा पण आवो ज उपदेश
अत्यारे दई रह्या छे के आत्माना उपयोगमां ज्ञानक्रिया ते
अहिंसा छे, ने रागक्रिया ते हिंसा छे. –आवो उपदेश ते ज
वीतरागतानो उपदेश छे, ने वीतरागतानो उपदेश ते ज ईष्ट
उपदेश छे.
अहो, जगतने चैतन्यहितनो परम ईष्ट सन्देश देनारा एवा
जिनेन्द्रभगवंतोनो पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्स्व आनंद–उल्लासथी आपणे सौए
उजव्यो. प्रभुना पंचकल्याणकनो महोत्सव एटले सर्वे जीवोने माटे शांतिनो महोत्सव.
शांतिनो आ महोत्सव खरेखर अनेरी शांतिपूर्वक उजवायो. जगत ज्यारे भडके बळतुं
हतुं त्यारे वीतराग देवनी छायामां आवेला भव्यजीवो सुवर्णपुरीमां अनेरी ठंडक
अनुभवता हतां.
आपणा जिनेन्द्रभगवंतो तो चैतन्यनी अतीन्द्रियनी शांतिरूपे परिणमेला छे.
जेम ठंडकना पिंडरूप बरफनी नजीक पण ठंडक लागे छे तेम अतीन्द्रिय शांतिना पिंडला