Atmadharma magazine - Ank 365
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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:८: आत्मधर्म फागण : २५०० :
पू. बेनश्री–बेननी मंगलछायामां अनेक वर्षोथी रहीने आत्महितनी
प्रेरणाओ मेळवी छे; अने वैराग्यपूर्वक, जीवनमां निवृत्तिथी आत्महित
साधीए–एवी भावनाथी ते बहेनोए ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा अंगीकार करी छे.
मुमुक्षुना जीवननुं जे सत्य ध्येय छे ते ध्येयना मार्गे आगळ वधीने
अमारी आ ब्र. बहेनो पोतानुं आत्महित शीघ्र साधो–एवी शुभेच्छा
साथे ते बहेनोने धन्यवाद!
ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा अंगीकार करावतां गुरुदेवे कह्युं के आजे आ ११
बहेनो ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा ल्ये छे. प१ बहेनो पहेलांंनां छे ने ११ बहेनो
आजे थाय छे;–कुल ६र ब्र. बहेनो थयां छे. आ बधो प्रताप चंपाबेननो
छे–एम कहीने पू. बेनश्री चंपाबेननी अंतरंग आत्मदशानो महिमा
प्रसिद्ध कर्यो हतो;–जे सांभळतां सर्वे सभाजनोने घणी प्रसन्नता थई
हती विद्वान भाईश्री हिंमतलाल जे. शाहे समाजवती ब्र. बहेनोने
अभिनंदन आप्या हतां. बहेनो! आपणुं ध्येय घणुं महान छे.... प्रभु
श्री वीरनाथना वीतराग मार्गे आपणे जवानुं छे.... एटले राग–द्वेषना
कोई प्रसंगमां क््यांय अटक्या वगर, संतोए आपणने जे पवित्र
चैतन्यतत्त्व बताव्युं छे ते परमब्रह्म चैतन्यतत्त्वना ध्येये आनंदमय
आत्मजीवन प्राप्त करजो.
–ब्र. हरिलाल जैन
(११ ब्र. बहेनोनो फोटो आ छपातां सुधीमां मळी शक््यो नथी;
मळशे एटले आत्मधर्ममां छापीशुं)
दिव्यध्वनिना वाजां वडे मोक्षपुरीना मंगल दरवाजा
खोलनार, ने भव्य जीवोनां अंतरमां
भावश्रुतना दीवडा प्रगटावनार
त्रिकालवर्ती तीर्थंकर भगवंतो!
अम आंगणे
पधारो.... पधारो.... पधारो.