Atmadharma magazine - Ank 365
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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महा........निर्वाणनुं अढीहजारमुं मंगल वर्ष




५धारो वीरप्रभु! पधारो जिनवाणीमाता!
पधारो कुंदकुंदप्रभु! जगतना सर्वोत्कृष्ट रत्न एवा
आप त्रणेना पधारवाथी अमारुं ज्ञानमंदिर तेमज
परमागममंदिर बंने अतिशयपणे शोभी ऊठया छे.
आपनुं चिंतन करतां शांतरसना शीतळफूवाराथी
चैतन्यबगीचो खीली रह्यो छे. अहो, आवो
वीतरागी त्रिवेणीसंगम कहानगुरुना प्रतापे प्राप्त
थयो छे, ते भव्यजीवोने मुक्तिमार्ग बतावे
छे.....आवो रे आवो! अहीं मुक्तिमारग खूल्ला छे!
तंत्री: पुरुषोतमदास शिवलाल कामदार * संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २५०० फागण (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष ३१: अंक नं. ५