नथी आवता...नीकटमुक्तिगामी कोईक विरला जीवो ज आ पावन
पंथमां आवे छे...ने आ पंथमां आवे छे ते जीव परमईष्ट एवी
चैतन्यशांतिने पामीने न्याल थई जाय छे.
आवा ईष्टमार्गनी प्राप्ति ए ज कल्याणनो सौथी मोटो उत्सव छे.
तीर्थंकरोना पंचकल्याणक हो के तीर्थंकरोनो उपदेश हो, –ते पण
आवा आत्मकल्याण अर्थे ज उपकारी छे.
मांडवानुं शरू करी देवुं–ते मुमुक्षुनुं काम छे. घणुं जीवन वीत्युं...घणां
वरस वीत्या...घणां भव वीती गया...गई सो गई...पण हवे
सुखनो खजानो ने शांतिनो समुद्र हाथमां आव्या पछी दुःखमां ने
अशांतिमां एकक्षण पण कोण रहे? अहा! देखो तो सही,
चैतन्यत्त्वनी मधुरता केवी अद्भुत छे! केवुं निस्पृह, शांतने
एकत्वथी ते शोभी रह्युं छे! दूर नथी, ढांकेलुं नथी...पोते ज
पोतानो साक्षात्कार करनारुं सत् स्वधमान तत्त्व छे. ते सत्मां
सर्वस्व छे. स्वानुभवमां तेनी सिद्धि छे. स्वानुभूतिरूप जैनशासन
जयवंत छे.