Atmadharma magazine - Ank 365
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3 of 53

background image
ईष्ट – सिद्धिना पंथे –
जेनाथी ईष्टनी सिद्धि थाय एवो ‘ईष्टउपदेश’ आपीने
भगवान वीरनाथे आपणने ईष्टसिद्धिनो पंथ बताव्यो छे. आ
पंथतो जगतना बधा जीवोने माटे छे, पण बधा जीवो आ पंथमां
नथी आवता...नीकटमुक्तिगामी कोईक विरला जीवो ज आ पावन
पंथमां आवे छे...ने आ पंथमां आवे छे ते जीव परमईष्ट एवी
चैतन्यशांतिने पामीने न्याल थई जाय छे.
अहा, मार्ग आजे कहानगुरुना प्रतापे आपगने प्राप्त थयो
छे....कहानगुरुए आपणने आ ईष्टमार्गमां लीधा छे. जीवने
आवा ईष्टमार्गनी प्राप्ति ए ज कल्याणनो सौथी मोटो उत्सव छे.
तीर्थंकरोना पंचकल्याणक हो के तीर्थंकरोनो उपदेश हो, –ते पण
आवा आत्मकल्याण अर्थे ज उपकारी छे.
साधर्मी बंधुओ, कल्याणना आवा महान अवसरने
पामीने, हवे एकक्षण पण गुमाव्या वगर ईष्टसिद्धिना पंथे पगला
मांडवानुं शरू करी देवुं–ते मुमुक्षुनुं काम छे. घणुं जीवन वीत्युं...घणां
वरस वीत्या...घणां भव वीती गया...गई सो गई...पण हवे
सुखनो खजानो ने शांतिनो समुद्र हाथमां आव्या पछी दुःखमां ने
अशांतिमां एकक्षण पण कोण रहे? अहा! देखो तो सही,
चैतन्यत्त्वनी मधुरता केवी अद्भुत छे! केवुं निस्पृह, शांतने
एकत्वथी ते शोभी रह्युं छे! दूर नथी, ढांकेलुं नथी...पोते ज
पोतानो साक्षात्कार करनारुं सत् स्वधमान तत्त्व छे. ते सत्मां
सर्वस्व छे. स्वानुभवमां तेनी सिद्धि छे. स्वानुभूतिरूप जैनशासन
जयवंत छे.
ते शासनना प्रणेता तीर्थंकरभगवंतोने नमस्कार हो.