श्री परमागम–मंदिर प्रतिष्ठा महोत्सव – विशेषांक
वार्षिक वीर सं. २५००
लवाजम फागण
चार रूपिया MAR.1974
अहो, वीतरागी देश–शास्त्र–गुरुना मंगलमय
सन्देशने जगतमां फेलावनार, रत्नत्रय जेवा त्रण
शिखरोथी शोभतुं आ परमागम–मंदिर आजे खुल्लुं थयुं छे.
भव्यजीवो! आवो....आवो! आनंदथी आवो.... ने
परमागममां भरेलो वीतरागी शांत चैतन्यरस पीओ....
खूब खूब पीओ.
गुरुदेव कहे छे के अहो! ‘विमलाचल’ उपरथी
वीरनाथ भगवाने जे विमल सन्देशो आप्यो ते ज सन्देश
कुन्दकुन्दाचार्यदेवे परमागमद्वारा जगतने आप्यो छे. अहो,
आत्मानो आनंद जेनाथी पमाय एवो वीरनाथनो मार्ग
जयवंत छे.
ज्यां वीरप्रभुनां वहेण छे, कुंदकुंदप्रभुनां कहेण छे;
मीठां अमृत वेण छे, श्री जिनागम जयवंत छे.