Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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महावीरभगवाननो महोत्सव केवी रीते ऊजववो?
अखिल भारत, भगवान महावीर २५००मा निर्वाणमहोत्सवसमिति
दिल्ही तरफथी, तीर्थक्षेत्रोनी फिल्म उतारवा माटे प्रवास करी रहेला भाईओ,
गतमासमां सोनगढ आवेला; तेमणे सोनगढनी फिल्म उतारी, तेमज महावीर
भगवानना निर्वाणमहोत्सव संबंधी गुरुदेव (कानजीस्वामी) नो संदेश लीधो.
गुरुदेवे संदेशमां जे कह्युं ते समस्त जैनसमाजने माटे उपयोगी मार्गदर्शक होवाथी
अहीं आपीए छीए.
महावीर भगवाने भेदविज्ञानवडे मोक्षदशा प्राप्त करी छे, अने जगतने
माटे पण तेमणे भेदविज्ञाननो ज सन्देश आप्यो छे. आत्मा शुद्ध ज्ञानानंद
चैतन्यतत्त्व छे; शरीर अचेतन छे अने रागादिभावो दुःखदायक आस्रव छे; ते
बंने अत्यंत भिन्न छे. आ प्रमाणे आत्मा अने आस्रवोनी भिन्नता जाणीने,
ज्ञानस्वरूप आत्मानी अनुभूति करवी ते ज जैनशासनमां महावीर भगवाननुं
फरमान छे.
आवुं भेदविज्ञान करवुं अने तेनो प्रचार करवो, ते ज महावीर भगवाननो
निर्वाण–महोत्सव उजववानी साची रीत छे.
जीवे शुभ–अशुभ भावो तो अनंतवार कर्या छे; परंतु जैनशासनमां
भगवाने शुभरागने तो पुण्य कह्युं छे, अने मोह वगरना शुद्ध चेतना–परिणामने
ज धर्म कह्यो छे. भगवान कुंदकुंदस्वामी पण विदेहक्षेत्रमां सीमंधर परमात्मा पासे
जईने आ ज सन्देश लाव्या हता. जगतना जीवो तीर्थंकरना आवा सन्देशने
पामीने आत्महित करो.
तीर्थंकर भगवंतो ज्यांथी मोक्ष पधार्या एवा सम्मेदशिखर, गीरनार,
पावापुरी वगेरे तीर्थनी यात्रा करतां ते भगवंतोनुं स्मरण थाय छे; एवा तीर्थोनी
यात्रा, मुनिओनुं बहुमान, तथा साधर्मीओमां परस्पर प्रेम–वात्सल्यनो प्रचार
थाय, अने जगतना जीवो वीतराग–विज्ञान पामीने आत्महित करे,–ए ज
निर्वाण महोत्सवनुं प्रयोजन छे.
जैनसमाजमां बधा लोको साथे मळीने भक्ति–उल्लासपूर्वक महावीर
भगवाननो निर्वाण–महोत्सव ऊजवे–ए सारी वात छे.
जय महावीर