Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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वार्षिक लवाजम वीर सं. २५००
चार रूपिया चैत्र
वर्ष ३१ ई. स. 1974
अंक ६
APRIL
रु रु
आनंदथी उजवीए–प्रभुना मोक्षनो महोत्सव
महावीर भगवाननुं नाम लेतां पण जैनमात्र एक अनेरी
ऊर्मि अनुभवे छे; महावीर–एक तो अमारा भगवान, बीजुं एमना
निर्वाणनुं अढीहजारमुं वर्ष, अने वळी ते निमित्ते अमे अमारा प्रभुनी
वात लखीए–ए केवी मजानी आनंदनी वात छे:–आवी अंतरनी
ऊर्मिथी १८० जेटला जिज्ञासुओए महावीरप्रभु संबंधी निबंध लखी
मोकल्या छे. भाईओ ने बहेनो सौए होंशथी भाग लीधो छे, ने एक–
एकथी चडियाता लखाणो लख्या छे,–ते माटे सौने धन्यवाद! जाणे के
महावीर प्रभुजी सामे ज हाजर होय, मुक्तिमार्ग बतावता होय, ने
पोते ते पंथे जई रह्या होय–एवी उर्मिलशैलीनी आ निबंधमाळा आ
अंकथी आत्मधर्ममां शरू थाय छे; ते आपने जरूर गमशे...ने प्रभुना
मोक्षनो उत्सव उजवतां आनंद थशे.
(निबंध लखनाराओने धन्यवाद साथे ‘महावीर–चंद्रक’
ईनाम मोकलवानुं काम चालु छे; केटलाक मोकलाय छे, ने बीजा बधा
पण वैशाख सुद बीज पहेलांं मोकलाई जशे. महावीरप्रभु संबंधी
नवीन लखाणो स्वीकारवानुं चालु छे. – सं.)