: २ : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
मोक्षगामी महावीर भगवाननी ओळखाणथी
आपणने थतो महान लाभ
२५०० मा महावीर निर्वाण महोत्सव
निमित्ते लखायेल निबंध (१)
(एम. के. जैन सोनगढ)
भगवान महावीर परमात्मा मोक्षदशाने पाम्या, तेथी मारा आत्माने शुं
थयुं? अहा, आत्माना ज्ञान–आनंदमय मोक्षपदनो जेणे निर्णय कर्यो, एटले के
रागथी अत्यंत रहित एवी आत्मानी पूर्ण शुद्ध सिद्धदशा, तेमज ज्ञाननी पूर्णदशारूप
केवळज्ञान, –ते रूपे थनार आत्मा जगतमां छे एवो ज्यां निर्णय कर्यो त्यां पोताना
आत्माना पूर्ण शुद्धस्वभावनो पण निर्णय थयो, एटले पोते पण तेवा पूर्णानंद
तरफ पगलां मांड्या. आ रीते ‘प्रभुजी! तारा पगले पगले मारे आववुं रे’ एवा
भावपूर्वक महावीर भगवाननी साची ओळखाण थाय छे, ने तेमां मोक्षमार्गनो
महान लाभ छे. केवळज्ञाननो ने सिद्धपदनो जेणे निर्णय कर्यो, तेणे पोताना
आत्मामां केवळज्ञाननी ने सिद्धपदनी शरूआत करी...मोक्षमार्गनी शरूआत करी.
अतीन्द्रियभावे आत्माने जाणीने ज सर्वज्ञ परमात्मानी साची ओळखाण ने स्तुति
थई शके छे.
सर्वज्ञनो निर्णय करतां एवो निर्णय पण तेमां भेगो ज आवी जाय छे के,
मारा आत्मामां पूर्ण ज्ञान ने आनंद प्रगटवानो स्वभाव भर्यो छे; राग मारुं स्वरूप
नथी के अल्पज्ञता जेटलो हुं नथी. आम स्वभाव सामर्थ्यनो स्वीकार थतां ते तरफनो
अपूर्व उल्लास आवे छे–एटले निःशंक थईने परिणति ते–रूप परिणमी जाय छे, ने
रागथी भिन्नता थई जाय छे. आवी भेदज्ञानदशा ते भगवानने ओळखवानो
महान अपूर्व लाभ छे...आत्मप्राप्तिनो ईष्ट लाभ छे.
महावीर भगवान! आप सर्वज्ञ थया...अहो नाथ! आप कई रीते सर्वज्ञ
थया? –अंतरनी चैतन्यशक्तिना अवलंबने आप सर्वज्ञ थया, ने अमने पण ए
मार्ग बताव्यो;