Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
गुण–पर्यायोमां व्यापतुं होवाथी तेने ‘अव्याप्ति’ नथी. आत्माना कोई गुण–पर्याय
ज्ञान वगरनां होय नहि; ने ते ज्ञानलक्षण रागादिमां व्यापतुं नथी, तेनाथी जुदुं ज रहे
छे, तेथी तेने ‘अतिव्याप्ति’ पण नथी. आवा ज्ञानलक्षणने अनुसरीने आत्माने
अनुभवमां ले.–ते मोक्षनो उपाय छे.
चैतन्यभावनो दोर सांधीने तुं अंदर चाल्यो जा.–तो आत्मामां पहोंची जईश,
ने बंधनथी छूटो पडी जईश. अरे, आवा ज्ञान वगरना जीवो ते संसारमां राग–द्वेष–
कषायनी अग्निथी बळी रह्या छे; पण एने भान नथी के केटलुं दुःख छे! अंदरनी
चैतन्यनी शांति जोई होय तो खबर पडे के कषायमां केटलुं दुःख छे? अने चैतन्यलक्षण
तो कषाय वगरनुं शांत छे; तेमां रागनो–कषायनो कोई अंश न आवे. चैतन्यलक्षणवडे
आत्माने रागथी तो भिन्न करवानो छे, तो ते भिन्न करवामां राग मदद केम करे?
शुभराग तेनुं साधन छे ज नहीं; रागथी जुदुं एवुं ज्ञान ज तेनुं साधन छे. अरे,
जगतना जीवोने मोक्षना साधननी पण खबर नथी, ने रागने साधन मानी बेठा छे.
भगवान महावीर कहे छे के रागथी जुदुं परिणमतुं, ने आत्माथी अभिन्न परिणमतुं
एवुं ज्ञान ज मोक्षनुं साधन छे.–एनाथी जुदा बीजा कोई साधनने शोधीश मा.
करणशक्तिवडे ज्ञान पोते ज पोताना साधनपणे परिणमे छे. अबंधस्वरूपी भगवान
आत्मानो अनुभव करवा माटे, बंधस्वरूप एवा रागादि साधन केम थाय? चैतन्यनी
सन्मुख थयेली पर्याय रागथी तो तद्न जुदी वर्ते छे. रागने ज्ञाननुं साधन माननार
जीव राग अने ज्ञानने जुदा पाडी शकतो नथी, ते तो बंनेेने एक माने छे–एटले
बंधभावरूपे ज आत्माने अनुभवे छे; तेने मोक्षना साधननी खबर नथी. अरे बापु!
राग पोते बंधभाव, ए ते मोक्षनुं साधन केम थाय? बापु! मोक्षना मारगडा तो
अंदरमां रागथी पार छे. अंदर भेदज्ञान करीने सम्यग्दर्शन–ज्ञान प्रगट करे ते साचो
पंडित छे. बाकी तो बधा रागनां फोतरां खांडे छे. भेदज्ञान वगरनुं शास्त्रभणतर तो
पाणीने वलोववा जेवुं छे, बापु! रागना वलोणामांथी तने मोक्षमार्ग हाथ नहि आवे.
रागथी भिन्न पडेली, ने चैतन्यसन्मुख थयेली एवी ज्ञाननी अनुभूति ते मोक्षमार्ग छे,
ते धर्म छे; ने ते ज महावीर भगवाननो ईष्ट उपदेश छे.