Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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आत्माना मोक्षनुं साधन आत्मामां छे. अंदरमां आत्मा अने बंधने जुदा पाडवा
ते मोक्षनुं साधन छे एम कह्युं. त्यां जेणे ए रीते जुदुं पाडवानी धगश जागी हती एवा
शिष्यनो मार्मिक प्रश्न हतो के प्रभो! अंदरमां आत्मा अने रागादिकने जुदा कई रीते
पाडवा? तेने जुदा पाडवानुं साधन शुं? बंने एकमेक जेवा देखाय छे तेने कया
साधनथी जुदा पाडवा? आत्मा अने बंधने जुदा पाडवानुं तो आपे कह्युं,–एटले
रागादिक बंधभावो ते कोई मोक्षनुं साधन नथी, तेने जुदा पाडवा ते ज मोक्षनुं साधन
छे–एटलुं तो लक्षमां लईने स्वीकार्युं छे, हवे एवा जुदापणानो साक्षात् अनुभव केम
थाय? एवी झंखनावाळो शिष्य तेनुं साधन पूछे छे. ने तेने आचार्यदेव आ गाथामां
आत्मा अने बंध बंनेना भिन्नभिन्न लक्षणो समजावीने, तेमने अत्यंत जुदा पाडवानी
अलौकिक रीत बतावे छे. आ रीते समजे तेने जरूर भेदज्ञान थाय, ने मोक्षना दरवाजा
खुल्ली जाय.
सांभळ, भाई! ज्ञानने रागथी जुदुं अनुभववा माटेनुं साधन पण ज्ञान ज छे,
ज्ञानथी जुदुं बीजुं कोई साधन नथी, ज्ञानस्वरूप आत्मा ‘कर्ता’ छे; तो तेनुं ‘कारण’
पण ज्ञानस्वरूप ज छे, केमके निश्चयथी कर्तानुं साधन तेनाथी जुदुं होतुं नथी. आत्मा
अने बंधभावो–ए बंनेनां भिन्नभिन्न लक्षणोने जाणनारुं जे ज्ञान छे, ते ज तेमने
जुदा करवानुं साधन छे. जे ज्ञाने चेतनालक्षणथी आत्माने जाण्यो, ने रागादि लक्षणोथी
बंधभावने जाण्यो,–ते ज्ञान पोते ज आत्मामां एकत्वपणे परिणमे छे ने रागादिथी
भिन्नपणे परिणमे छे,–आ रीते रागादिथी भिन्न पोताने अनुभवतुं ते ज्ञान ज
भिन्नतानुं साधन छे.
अहो, भेदज्ञाननी रीत बतावीने संतोए मोक्षना मारग खोली नांख्या छे.
जुओ, आ महावीर भगवाननो मार्ग! चैतन्यने अनुसरीने अनुभूति थवी ते
प्रज्ञाछीणी छे, ते मोक्षनुं साधन छे.
चैतन्यस्वरूप आत्मा छे, तेनुं चैतन्यलक्षण रागथी भिन्न छे, ने ते
चैतन्यलक्षण आत्माना अनंतगुणोमां तथा क्रमेक्रमे थती पर्यायोमां पण व्यापेलुं छे.
आत्माना समस्त