: ३६ : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
तेनुं भान करीने तेनो विकास करतां करतां आ भवमां भगवाने पूर्ण परमात्मपद
साधी लीधुं. आत्मामां अनंत सामर्थ्य छे. आत्मानो पूर्ण विकास तो बधा अरिहंत–
केवळीभगवंतोने होय छे, पण तीर्थंकरना आत्माने पवित्रतानी साथे पुण्य पण विशिष्ट
होय छे, तेमनी दिव्यध्वनि वडे जगतना लाखो–करोडो जीवो धर्म पामे छे. भरतक्षेत्रमां
एवा तीर्थंकरना अवतारनो आजे दिवस छे. जीवो पोतानी चैतन्यसंपदाने पामे अने
मुक्तिना पंथे दोराय–एवो उपदेश तीर्थंकरोनी वाणीमां होय छे. आवा भगवानना
जन्मने ईन्द्रो पण ऊजवे छे. अहा, जेणे अनादि संसारनो अंत कर्यो ने आत्मानुं
परमात्मपद प्रगट कर्युं, सादि–अनंत मुक्तदशा जेमणे प्रगट करी–एवा आत्मानो जन्म
ते सफळ छे, ने तेनो उत्सव उजववामां आवे छे. बाकी जन्मीने जेणे आत्मानुं कांई कर्युं
नथी एनो जन्मोत्सव शो? एनो जन्म तो निष्फळ छे. जन्मीने नरकादिमां रखडे–
एनां ते जन्मोत्सव शा? जन्म तो तेना उजवाय के जेणे फरीने जन्मवानुं बंध कर्युं;
जेणे संसारमां अवतरवानुं बंध कर्युं ने मोक्षने साध्यो, तेनो अवतार सफळ छे.–एवा
भगवाननो आजे जन्म–कल्याणक दिवस छे. ते भगवाने उपदेशमां शुं कह्युं? ने क््या
उपायथी भवनो अंत कर्यो? ते वात अहीं समयसारनी २९४ मी गाथामां बतावी छे.
अहो, भगवाने ज्ञान अने रागनी अत्यंत भिन्नता बतावी छे. चैतन्यलक्षण ते
आत्मा छे, ने राग ते बंधन एटले के संसार छे;–ए बंनेने जुदा अनुभववा ते मोक्षनो
उपाय छे. ए बंनेनुं भिन्नपणुं भगवती ज्ञानचेतना वडे अनुभवी शकाय छे. भगवान
महावीरे एवा अनुभव वडे मोक्षने साध्यो, ने जगतने तेनी रीत बतावी.
चैतन्यभाव ते आत्मानुं स्वलक्षण छे; जे कोई गुण–पर्यायोमां चैतन्यभाव
व्यापे छे ते बधा गुण–पर्यायो आत्मा छे,–एम चैतन्यलक्षणवडे आत्माने ओळखवो.
अने जे रागादिभावो छे ते चैतन्यचमत्कारथी सदाय भिन्न छे, ते चैतन्य साथे एकरूप
नथी, तेना अभावथी कांई आत्मानो अभाव थई जतो नथी; ते रागादिक वगर पण
चेतनालक्षणरूप आत्मा अनुभवमां आवे छे; माटे ते रागादिकने चैतन्यथी अत्यंत
भिन्नपणुं छे. रागने जाणनारुं जे ज्ञान छे ते पोताने ज्ञानपणे (चेतकपणे) प्रसिद्ध करे
छे के ‘हुं ज्ञान छुं’; अने ते ज्ञान, रागने तो परज्ञेयपणे प्रसिद्ध करे छे के रागपणे जे
जणाय छे ते हुं नथी; तेने जाणनारो हुं तेनाथी जुदो छुं. आम अंतरना सूक्ष्म भेदने
जाणनारी तीक्ष्ण प्रज्ञाबुद्धि वडे, आत्मा अने बंधनो भेद पडी जाय छे, एटले आत्मा