Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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मोक्षस्वरूप आत्मा, ते राग वगरनो, भवना भाव वगरनो छे, तेमां एकत्व–
परिणमनथी तो राग वगरनो अबंधभाव प्रगटे छे, ते मोक्षनुं साधन छे. अने राग तो
भवनुं कारण छे. भवनो अभाव करवामां रागनो बिलकुल साथ नथी. अंदर जेणे
आवा अबंधस्वभावी आत्माने लक्षगत कर्योर् तेने पर्यायमां पण तेवो अबंधभाव
प्रगट थयो छे, एटले मोक्षनो भाव खुल्यो छे, अरे बापु! बंधना मारग, ने मोक्षना
मारग, ए ते कांई एक होय? बंनेने तद्न जुदापणुं छे. तेनुं जुदापणुं नक्की करतां
भेदज्ञान वडे आत्मामां अतीन्द्रिय आनंदनी उत्पत्ति थई, एटले ते आत्मानी पर्यायमां
भगवाननो अवतार थयो. आत्मामां भवनो अभाव थाय ने मोक्षनो भाव प्रगटे ते
मंगल–अवतार छे, ते आत्मा मोक्षनी मंगलपर्यायमां अवतर्यो.
अत्यारे भगवान महावीरनुं शासन चाले छे; तेमनो आजे जन्मकल्याणकनो
दिवस छे. जन्म तो जगतमां घणां जीवोनां थाय छे, पण भगवाननो तो आ जन्म
तीर्थंकर तरीकेनो जन्म हतो; आ जन्ममां केवळज्ञान प्रगट करीने तेमणे जगतने
मोक्षनो मार्ग बताव्यो, तेथी भगवाननो जन्म ते मंगळरूप छे, ते कल्याणक तरीके
उजवाय छे. आ भव पहेलांं भगवानने आत्मानुं भान हतुं ते तीर्थंकर नामकर्म बांध्युं
हतुं. पछी ज्यारे त्रिशलामातानी कुंखे प्रभु स्वर्गमांथी अवतर्या त्यारे पण आत्मानुं
भान तेमज अवधिज्ञान सहित हता. भगवाननो जन्म थतां ईन्द्र आवीने भगवानना
माता–पितानी पण स्तुति करे छे: अहो माता! तुं जगतनी माता छो, तारा उदरमां
जगतना नाथ तीर्थंकर बिराजे छे; तेथी तुं रत्नकुंखधारिणी छो. भगवाननुं तो बहुमान
करे, पण तेमना मातानुं पण बहुमान करे छे. हे माता! वीरप्रभु तारो तो पुत्र छे पण
अमारो तो परमेश्वर छे; तारो भले पुत्र, पण जगतनो ते तारणहार छे.–आम कहीने
ईन्द्रो माताने नमस्कार करे छे.
भगवान तो जन्मथी ज त्रण ज्ञान सहित छे. आत्मानुं सामर्थ्य अद्भुत छे;